क्या स्त्रियाँ हनुमान जी के पैर छू सकती हैं? जानिए धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण

क्या स्त्रियाँ हनुमान जी के चरण छू सकती हैं? जानिए इसके पीछे की धार्मिक मान्यता, सामाजिक परंपरा और आध्यात्मिक दृष्टिकोण। पढ़ें एक संतुलित और तथ्यपूर्ण विश्लेषण।

क्या स्त्रियाँ हनुमान जी के पैर छू सकती हैं? जानिए धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण

 

क्या स्त्रियाँ हनुमान जी के पैर छू सकती हैं? जानिए धार्मिक, सामाजिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण

भारत की धार्मिक परंपराएं अत्यंत प्राचीन, विस्तृत और विविध हैं। यहाँ हर देवता की पूजा विधि, नियम और मर्यादाएं निर्धारित की गई हैं। इन्हीं में से एक सवाल, जो कई लोगों के मन में आता है वह यह है –
"
क्या स्त्रियाँ हनुमान जी के पैर छू सकती हैं?"
यह प्रश्न धर्म, परंपरा और विश्वास से जुड़ा है और इसके उत्तर को समझने के लिए हमें धार्मिक ग्रंथों, सामाजिक परंपराओं और आधुनिक सोच – तीनों को ध्यान में रखना होगा।


 हनुमान जी: ब्रह्मचारी और भक्तों के रक्षक

हनुमान जी को हिंदू धर्म में अत्यंत पूजनीय माना गया है। वे भगवान शिव के अवतार, श्रीराम के अनन्य भक्त और परम बलशाली, विद्वान और ब्रह्मचारी हैं।
उनका चरित्र निष्कलंक, त्यागमयी और भक्तिपूर्ण है। वे संकटमोचन हैं – जो अपने भक्तों के संकट हरते हैं।


 धार्मिक मान्यता: स्त्रियाँ और हनुमान पूजा

कुछ परंपराओं के अनुसार, यह माना जाता है कि हनुमान जी आज भी इस धरती पर जीवित हैं और चूँकि वे ब्रह्मचारी हैं, इसलिए स्त्रियों को उनकी पूजा करने या उनके पैर छूने से मना किया जाता है।

 इस विचार के पीछे मुख्य कारण:

1.    ब्रह्मचर्य का पालन: हनुमान जी का ब्रह्मचर्य अत्यंत कठोर माना जाता है। कुछ पंथों के अनुसार स्त्रियों का स्पर्श या अत्यधिक निकटता ब्रह्मचर्य नियमों के विरुद्ध माना जाता है।

2.    परंपरागत दृष्टिकोण: कुछ ग्रामीण और दक्षिण भारत की परंपराओं में यह मान्यता है कि महिलाएं केवल दूर से हनुमान जी को प्रणाम कर सकती हैं।

3.    लोककथाएं और जनविश्वास: कुछ कहानियाँ बताती हैं कि हनुमान जी ने स्वेच्छा से स्त्रियों से दूरी बनाकर रखी ताकि उनका ब्रह्मचर्य न टूटे।


 क्या धार्मिक ग्रंथों में ऐसा कोई स्पष्ट निषेध है?

 रामायण, महाभारत या पुराणों में कहीं भी ऐसा स्पष्ट निषेध नहीं मिलता कि महिलाएं हनुमान जी की पूजा नहीं कर सकतीं या उनके चरण नहीं छू सकतीं।

रामचरितमानस में तुलसीदास जी ने हनुमान जी की स्तुति सभी भक्तों के लिए समान रूप से प्रस्तुत की हैउसमें कहीं भी स्त्रियों के लिए निषेध नहीं है।

निष्कर्ष: यह निषेध अधिकतर लोक मान्यता और परंपरा पर आधारित है, न कि किसी शास्त्रीय आदेश पर।


आध्यात्मिक दृष्टिकोण: भक्ति में भेद नहीं

सनातन धर्म में भक्ति को सर्वोपरि माना गया है।
ईश्वर तक पहुँचने के लिए न लिंग की सीमा है, न जाति की, न उम्र की।

 भक्ति का अर्थ है – समर्पण, श्रद्धा और विश्वास।

  • कई संतों, विशेषकर मीरा बाई, अक्का महादेवी आदि ने इस बात को साबित किया कि सच्चे प्रेम और भक्ति में कोई भेद नहीं होता।
  • हनुमान जी खुद भक्तों के दास माने जाते हैं। उनकी पूजा कोई भी कर सकता है – स्त्री या पुरुष।

 समाज और आधुनिकता: अब बदल रही है सोच

आज के युग में महिलाएं हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं, और धार्मिक अधिकारों में भी समानता की बात की जा रही है।

  • कई मंदिरों में पहले महिलाओं के प्रवेश पर रोक थी, अब उसे कानूनी और सामाजिक समर्थन से बदला जा रहा है।
  • हनुमान मंदिरों में भी आजकल महिलाएं पूरी श्रद्धा से पूजा करती हैं, हनुमान चालीसा पढ़ती हैं, और उनके चरणों में फूल अर्पित करती हैं।

 क्या होता है जब कोई स्त्री हनुमान जी के पैर छू लेती है?

यह एक आस्था आधारित प्रश्न है। बहुत सी महिलाएं वर्षों से श्रद्धा से हनुमान जी की पूजा कर रही हैं और उन्हें किसी प्रकार की हानि या दोष नहीं हुआ।
बल्कि वे कहती हैं कि उन्हें हनुमान जी की विशेष कृपा और संरक्षण मिला है।

 इसका तात्पर्य यह है कि यदि भाव शुद्ध है, तो पूजा स्वीकार होती है।


 क्या करें? श्रद्धा और मर्यादा दोनों का ध्यान रखें

 अगर आप परंपरागत मान्यता का पालन करना चाहती हैं:

  • हनुमान जी को दूर से प्रणाम करें।
  • चालीसा, सुंदरकांड का पाठ करें।
  • चरणों में पुष्प अर्पित करें, पर स्पर्श न करें।

 अगर आप भक्ति को सर्वोपरि मानती हैं:

  • श्रद्धा से पूजन करें, चरण स्पर्श भी करें।
  • मन में ईश्वर के प्रति प्रेम और आदर रखें।
  • किसी की आस्था या परंपरा का अपमान न करें।

निर्णय आपका है, मार्ग दोनों सही

"क्या स्त्रियाँ हनुमान जी के चरण छू सकती हैं?"
इसका उत्तर एक पंक्ति में नहीं दिया जा सकता, क्योंकि यह व्यक्ति की आस्था, समाज की परंपरा और धार्मिक समझ पर निर्भर करता है।

अगर आपके मन में श्रद्धा है, तो हनुमान जी आपका भाव अवश्य स्वीकार करेंगे।
अगर आप परंपरा को मानती हैं, तो भी वह सम्मान योग्य है।

ईश्वर भाव के भूखे हैं, रूप और रीति के नहीं।

 

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