ज्येष्ठ अष्टमी व्रत 2025: तिथि, पूजा विधि और महत्व
जानिए ज्येष्ठ अष्टमी व्रत 2025 की तिथि, पूजा विधि और धार्मिक महत्व के बारे में विस्तार से।

भारतवर्ष में व्रत और त्योहारों का विशेष धार्मिक महत्व है। हर तिथि, हर माह का कोई न कोई विशेष पर्व होता है जो भक्तों के लिए शुभकारी और पुण्यदायक माना जाता है। इन्हीं पर्वों में से एक है ज्येष्ठ अष्टमी व्रत, जिसे मासिक दुर्गाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। यह व्रत मां दुर्गा को समर्पित होता है और विशेष रूप से शक्ति की उपासना के लिए मनाया जाता है। इस लेख में हम जानेंगे ज्येष्ठ अष्टमी व्रत 2025 की तिथि, पूजा विधि और इसका धार्मिक महत्व।
ज्येष्ठ अष्टमी व्रत 2025 की तिथि और समय
पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को यह व्रत मनाया जाता है। यह तिथि हर महीने आती है लेकिन ज्येष्ठ माह की अष्टमी विशेष मानी जाती है। इस दिन मां दुर्गा की विधिवत पूजा करके व्रत रखने का विशेष महत्व है।
- अष्टमी तिथि प्रारंभ: 2 जून 2025, रात 8:34 बजे
- अष्टमी तिथि समाप्त: 3 जून 2025, रात 9:56 बजे
- व्रत की तिथि: 3 जून 2025, मंगलवार
अष्टमी व्रत पूजा प्रायः अष्टमी तिथि के दिन सूर्योदय के बाद की जाती है। अतः 3 जून को ही व्रत करना सर्वश्रेष्ठ रहेगा।
मासिक दुर्गाष्टमी व्रत का धार्मिक महत्व
मासिक दुर्गाष्टमी व्रत, मां दुर्गा की आराधना का एक विशिष्ट पर्व है। देवी दुर्गा को शक्ति, साहस और रक्षक का प्रतीक माना गया है। यह व्रत मानसिक शांति, स्वास्थ्य, समृद्धि और बुरी शक्तियों से रक्षा के लिए किया जाता है।
पुराणों के अनुसार, जो भक्त श्रद्धा और नियमपूर्वक इस व्रत का पालन करते हैं, उन्हें माता रानी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। यह व्रत विशेष रूप से स्त्रियों में लोकप्रिय है, जो परिवार की सुख-समृद्धि और संतति प्राप्ति के लिए यह उपवास करती हैं।
ज्येष्ठ अष्टमी व्रत की पूजा विधि
1. प्रातःकाल स्नान और संकल्प
व्रती को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करना चाहिए। इसके बाद मां दुर्गा की पूजा के लिए व्रत का संकल्प लें – "मैं अमुक तिथि को मां दुर्गा की कृपा पाने हेतु अष्टमी व्रत रख रहा/रही हूँ।"
2. पूजा स्थान की सफाई
घर के पूजा स्थल को साफ-सुथरा करके वहां लाल कपड़ा बिछाएं। मां दुर्गा की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
3. मां दुर्गा का पूजन
- मां को लाल फूल, सिंदूर, चूड़ी, मेहंदी, चावल, रोली, अक्षत, फल और मिठाई अर्पित करें।
- धूप, दीप और नैवेद्य चढ़ाएं।
- "ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे" मंत्र का 108 बार जाप करें।
4. व्रत कथा का श्रवण या पाठ
मासिक दुर्गाष्टमी व्रत कथा का पाठ करना अनिवार्य है। यह कथा एक ऐसी ब्राह्मणी कन्या की होती है जिसने देवी दुर्गा की आराधना से अपने जीवन की सभी समस्याओं को समाप्त किया।
5. आरती और प्रसाद वितरण
पूजा के अंत में माता की आरती करें। आरती के पश्चात सभी को प्रसाद बांटे।
व्रत नियम
- इस दिन व्रती को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
- लहसुन, प्याज, मांसाहार और नशीले पदार्थों से पूर्णतः परहेज करें।
- व्रत के दौरान एक बार फलाहार कर सकते हैं या निर्जला उपवास रखें।
- दिनभर माता दुर्गा का स्मरण और मंत्र जाप करें।
- संध्या के समय दीपक जलाकर फिर से पूजा करें।
मासिक दुर्गाष्टमी व्रत कथा (संक्षिप्त)
एक बार की बात है, एक निर्धन ब्राह्मण परिवार में कन्या जन्मी। उस कन्या ने मां दुर्गा की नित्य आराधना और मासिक अष्टमी का व्रत रखना प्रारंभ किया। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर मां दुर्गा ने उसे स्वप्न में दर्शन देकर वरदान दिया – "तेरी हर मनोकामना पूरी होगी।"
समय बीता और उस कन्या का विवाह एक समृद्ध परिवार में हुआ। जीवन में कभी कोई कष्ट नहीं आया। इससे यह सिद्ध होता है कि मां दुर्गा की उपासना सच्चे हृदय से की जाए, तो हर समस्या का समाधान मिलता है।
व्रत से प्राप्त होने वाले लाभ
1. शारीरिक और मानसिक शक्ति: माता रानी की कृपा से व्रती को मानसिक और शारीरिक शक्ति प्राप्त होती है।
2. रोगों से मुक्ति: स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से छुटकारा मिलता है।
3. दुश्मनों का नाश: नकारात्मक शक्तियों और शत्रुओं से रक्षा होती है।
4. घर में सुख-शांति: पारिवारिक जीवन में समृद्धि और शांति बनी रहती है।
5. आध्यात्मिक उन्नति: आत्मा का शुद्धिकरण होता है और भक्ति मार्ग प्रशस्त होता है।
महिलाओं के लिए विशेष लाभ
यह व्रत महिलाओं के लिए विशेष शुभ माना गया है। विवाहिता स्त्रियाँ इसे पति की दीर्घायु और संतान सुख के लिए करती हैं, जबकि कुंवारी कन्याएँ योग्य वर की प्राप्ति के लिए यह व्रत करती हैं।
अष्टमी पर कन्या पूजन का महत्व
कुछ स्थानों पर इस दिन कन्या पूजन भी किया जाता है। नौ कन्याओं को भोजन कराकर उन्हें उपहार दिए जाते हैं। यह पूजन मां दुर्गा के नव रूपों की पूजा का प्रतीक होता है और इससे विशेष पुण्य फल प्राप्त होता है।
राहुकाल और शुभ मुहूर्त (3 जून 2025 को)
- राहुकाल: दोपहर 3:00 बजे से 4:30 बजे तक
- अभिजीत मुहूर्त: दोपहर 11:51 बजे से 12:47 बजे तक
- पंचक नहीं रहेगा
- इस दिन पूजा के लिए सुबह और शाम दोनों ही समय शुभ माने जाते हैं।
क्या करें और क्या न करें
करें |
न करें |
ब्रह्मचर्य का पालन |
नकारात्मक बातें न सोचें |
सात्विक भोजन ग्रहण करें |
मांसाहार और मदिरा से दूर रहें |
मंत्र जाप करें |
झूठ न बोलें, क्रोध से बचें |
माता का ध्यान करें |
अंधेरे स्थानों में पूजा न करें |
निष्कर्ष
ज्येष्ठ अष्टमी व्रत एक ऐसा पावन अवसर है जो मां दुर्गा की कृपा पाने का सशक्त माध्यम है। इस दिन श्रद्धा, भक्ति और नियमपूर्वक किया गया व्रत न केवल सांसारिक समस्याओं से मुक्ति दिलाता है बल्कि आत्मिक बल भी प्रदान करता है। इस व्रत को हर स्त्री और पुरुष को करना चाहिए जो जीवन में स्थिरता, सुरक्षा और सुख-शांति की कामना करता है।