ज्येष्ठ मास की पवित्र पूर्णिमा: ज्येष्ठ सत्यनारायण व्रत – सम्पूर्ण मार्गदर्शन
जानिए १० जून २०२५ को होने वाले ज्येष्ठ सत्यनारायण व्रत का महत्व, पूजा विधि, लाभ, सही समय और जुड़े त्योहार।

भारतीय सनातन परंपरा में सत्यनारायण व्रत एक अत्यंत पुण्यदायक धार्मिक अनुष्ठान माना गया है। यह व्रत हर महीने की पूर्णिमा (पूरी चंद्रमा की रात) को रखा जाता है और इसमें भगवान विष्णु के सत्य रूप ‘सत्यनारायण’ की कथा, पूजा और उपवास शामिल होते हैं।
ज्येष्ठ मास का महत्व और व्रत का सन्दर्भ
- ज्येष्ठ मास भारतीय पंचांग का तीसरा महीना है, जो १३ मई २०२५ से ११ जून २०२५ तक रहेगा।
- इस मास में सत्यनारायण व्रत रखने से विशेष फल प्राप्त होते हैं क्योंकि इसे अत्यंत शुभ माना गया है।
- ज्येष्ठ सत्यनारायण व्रत इस मास की शुक्ल पूर्णिमा पर आयोजित किया जाता है।
ज्येष्ठ सत्यनारायण व्रत की तिथि व मुहूर्त
- तिथि: मंगलवार, १० जून २०२५ (ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा)
- पूर्णिमा प्रारंभ: १० जून सुबह ११:३५ बजे
- पूर्णिमा समाप्त: ११ जून दोपहर १:१३ बजे
- यह समय सत्यनारायण पूजा के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।
पूजा विधि – स्टेप बाई स्टेप
1. सुबह स्नान
o गंगाजल या स्वच्छ जल से स्नान करें और घर की सफाई करें।
2. पीट तैयार करना
o सफेद कपड़े या केले के पेड़ की चटाई पर भगवान की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
3. कलश स्थापना एवं दीप प्रज्जवलन
o कलश में जल, सुपारी व गुड़ डालकर स्थापना करें और घी का दीपक जलाएँ।
4. पूजा और कथा
o पंडित द्वारा सत्यनारायण कथा सुनें।
o पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, चीनी) से अभिषेक करें।
5. भोजन-अर्पण
o भुने आटे-शक्कर के भोग चढ़ाएं; तुलसी का प्रयोग करें।
6. आरती और अंत
o दीपक लेकर भगवान की आरती करें और पंचामृत ग्रहण कर व्रत खोलें।
आध्यात्मिक और सामाजिक लाभ
- आध्यात्मिक शांति: यह व्रत आत्मा को शुद्ध करता है और मन को एकाग्र करता है।
- कष्टों का नाश: कथा पढ़ने से जीवन की बाधाएँ दूर होती हैं।
- परिवार में सौहार्द: पूजा और कथा से पारिवारिक प्रेम और एकता बढ़ती है।
- सामाजिक दान: प्रसाद वितरण, गुड़-तिल दान और लोगों को भोजन करवाने से पुण्य बढ़ता है।
पूर्ववर्ती और आगामी सत्यनारायण व्रत (२०२५ में)
- पौष–१३ जनवरी
- माघ–१२ फरवरी
- फाल्गुन–१३ मार्च
- चैत्र–१२ अप्रैल
- वैशाख–१२ मई
- ज्येष्ठ–१० जून
- आषाढ़–१० जुलाई
- श्रावण–९ अगस्त
- भाद्रपद–७ सितंबर
- आश्विन–६ अक्टूबर
- कार्तिक–५ नवंबर
- मार्गशीर्ष–४ दिसंबर
- दिनांक: १० जून २०२५
- समय: सुबह ११:३५ बजे से ११ जून दोपहर १:१३ बजे तक
- प्रमुख लाभ: आंतरिक शांति, पारिवारिक सौहार्द, संकटों से मुक्ति
आध्यात्मिक आनंद एवं समृद्धि की प्राप्ति हेतु इस पवित्र व्रत को ईमानदारी और श्रद्धा के साथ करें।