संतोषी माता की आरती: हर शुक्रवार करें पाठ और पाएं मनवांछित फल

हर शुक्रवार की जाती है संतोषी माता की आरती। जानें इसका महत्व, व्रत विधि, आरती का पूरा पाठ और भक्तों के अनुभव — विस्तार से इस ब्लॉग में।

संतोषी माता की आरती: हर शुक्रवार करें पाठ और पाएं मनवांछित फल

 

संतोषी माता की आरती: श्रद्धा और संतोष की देवी का दिव्य पूजन

संतोषी माता को हिन्दू धर्म में "संतोष की देवी" के रूप में पूजा जाता है। उनके नाम में ही संतोष (संतुष्टि) समाहित है, और यही उनके पूजन का मूल भाव है — जीवन में कम में भी सुखी रहना, लालच से दूर रहना और धैर्य रखना। हर शुक्रवार को संतोषी माता का व्रत और आरती विशेष रूप से की जाती है, जिसमें महिलाएं, कन्याएं और कई पुरुष श्रद्धा के साथ भाग लेते हैं।

संतोषी माता की आरती, व्रत कथा और पूजा विधि लोगों के जीवन में शांति, समृद्धि और संतोष लाने का माध्यम मानी जाती है।


संतोषी माता कौन हैं?

संतोषी माता को हिन्दू धर्म में एक लोक देवी के रूप में जाना जाता है। इनका प्रचलन विशेष रूप से 20वीं शताब्दी में बढ़ा, जब 1975 में "जय संतोषी माता" फिल्म ने हर घर में इस देवी की श्रद्धा जगा दी। वह शक्ति की एक रूप मानी जाती हैं जो अपने भक्तों के दुख हरती हैं और उन्हें जीवन में संतोष प्रदान करती हैं।


संतोषी माता की पूजा का महत्व

संतोषी माता की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में संतोष, धैर्य, और मानसिक शांति आती है। उनके भक्तों का मानना है कि माता हर शुक्रवार को व्रत और आरती करने से जीवन के सारे कष्ट दूर करती हैं और मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं। उनकी पूजा से यह भी सिखने को मिलता है कि जीवन में "कम में भी सुख" कैसे पाया जा सकता है।


संतोषी माता की आरती

आरती पाठ:

जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता।

व्रत तेरा जो कोई करता, मनवांछित फल पाता॥

 

धूप, दीप, गुड़-चने से, तुझको भोग लगाता।

सच्चे मन से शरण जो आता, तुझसे सुख पाता॥

 

कुंवारी कन्याएं, व्रत जब तेरा करतीं।

संतान सौभाग्य पाकर, जीवन सुख से भरतीं॥

 

जो जन करता श्रद्धा से, हर दुख दूर भगाती।

धन, यश, वैभव देकर, जीवन सफल बनाती॥

 

तेरा नाम जपें जो कोई, जीवन में दुःख ना आता।

जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता॥


आरती का भावार्थ

इस आरती में संतोषी माता की महिमा का बखान है — कैसे उनका व्रत और नाम जपने से भक्तों को मनोवांछित फल मिलते हैं। विशेष बात यह है कि माता को गुड़ और चना का भोग प्रिय है, और व्रत में खट्टे भोजन से परहेज रखा जाता है।


संतोषी माता का व्रत कैसे करें?

1. व्रत का दिन:

संतोषी माता का व्रत शुक्रवार को किया जाता है। इसे लगातार 16 शुक्रवार तक करने का विधान है।

2. सामग्री:

  • चांदी या मिट्टी की संतोषी माता की प्रतिमा/तस्वीर
  • लाल वस्त्र
  • गुड़ और चना
  • धूप, दीप, अगरबत्ती
  • कलश और रोली

3. व्रत विधि:

  • प्रातः स्नान कर साफ वस्त्र धारण करें।
  • माता की प्रतिमा को चौकी पर लाल कपड़े पर स्थापित करें।
  • दीपक जलाएं, फूल चढ़ाएं, और माता का ध्यान करें।
  • संतोषी माता की व्रत कथा पढ़ें।
  • गुड़ और चना का भोग लगाएं।
  • अंत में आरती करें।

नोट: व्रत के दिन खट्टा खाना मना है और घर में झगड़ा नहीं होना चाहिए।


संतोषी माता व्रत कथा का सारांश

एक निर्धन बहु अपनी सास-ससुर की उपेक्षा झेलती है। एक दिन उसे संतोषी माता का व्रत करने का ज्ञान होता है। वह हर शुक्रवार यह व्रत रखती है और भक्ति से पूजा करती है। अंततः उसके जीवन की सभी कठिनाइयाँ समाप्त हो जाती हैं, उसका पति विदेश से लौटता है, और उसे मान-सम्मान मिलता है। यह कथा यह सिखाती है कि श्रद्धा, संयम और संतोष से हर असंभव कार्य संभव हो सकता है।


आरती का सही समय

संतोषी माता की आरती प्रातः पूजा के बाद और शाम को दीपक जलाकर की जाती है। यदि व्रत कर रहे हैं तो आरती के बाद ही भोजन करें।


क्या ना करें आरती के समय?

  • खट्टे खाद्य पदार्थ का सेवन न करें।
  • व्रत या पूजा के समय मन अशांत न हो।
  • किसी से झगड़ा या कटु वचन न कहें।
  • भोग में केवल गुड़ और चना ही अर्पित करें।

भक्तों के अनुभव

देश के कोने-कोने में लाखों भक्तों ने संतोषी माता के व्रत और आरती से लाभ पाया है। कई महिलाएं गर्भधारण से जुड़ी समस्याओं के समाधान के लिए व्रत करती हैं। छात्र परीक्षा में सफलता, नौकरी पाने वाले युवा और व्यापार में लाभ पाने के इच्छुक भक्त संतोषी माता की आराधना करते हैं।


संतोषी माता की आरती और पूजा एक साधारण लेकिन प्रभावशाली साधना है। यह न केवल भक्त के जीवन में संतोष लाती है, बल्कि मानसिक रूप से भी उसे स्थिर और सशक्त बनाती है। यदि आप भी जीवन में अशांति या कठिनाई का सामना कर रहे हैं, तो हर शुक्रवार को माता का व्रत और आरती करें — निश्चित रूप से सकारात्मक परिवर्तन महसूस होगा।


 Disclaimer (अस्वीकरण):

यह लेख केवल सामान्य धार्मिक जानकारी और श्रद्धा के आधार पर तैयार किया गया है। इसमें दिए गए उपायों और व्रत-पूजन विधियों का पालन करने से पहले संबंधित क्षेत्र के ज्ञानी ब्राह्मण या आचार्य से परामर्श अवश्य लें।