हरित क्रांति 2.0 – जैविक खेती योजना से टिकाऊ कृषि की ओर

हरित क्रांति 2.0 का उद्देश्य जैविक खेती को बढ़ावा देकर पर्यावरणीय संतुलन, किसानों की आय में वृद्धि और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना है। जानिए इसके लाभ, चुनौतियाँ और सरकारी योजनाएं।

हरित क्रांति 2.0 – जैविक खेती योजना से टिकाऊ कृषि की ओर

भारत की कृषि प्रणाली में 'हरित क्रांति 2.0' एक महत्वपूर्ण पहल है, जिसका उद्देश्य जैविक खेती को बढ़ावा देकर पर्यावरणीय स्थिरता और किसानों की आय में वृद्धि करना है। यह ब्लॉग 'हरित क्रांति 2.0 – जैविक खेती योजना' के विभिन्न पहलुओं, उद्देश्यों, लाभों, चुनौतियों और सरकार द्वारा उठाए गए कदमों पर विस्तृत जानकारी प्रदान करता है।

हरित क्रांति 2.0 का परिचय

1960 के दशक में हुई पहली हरित क्रांति ने भारत को खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाया, लेकिन इसके साथ ही रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग से पर्यावरणीय समस्याएं भी उत्पन्न हुईं। इन चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए, 'हरित क्रांति 2.0' की अवधारणा विकसित की गई, जिसका मुख्य फोकस जैविक और सतत कृषि पद्धतियों को अपनाना है।

जैविक खेती का महत्व

जैविक खेती में रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों और संशोधित बीजों के बजाय प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग किया जाता है, जिससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है और पर्यावरण को कम नुकसान होता है। यह पद्धति न केवल स्वस्थ खाद्य उत्पादन में मदद करती है, बल्कि किसानों की उत्पादन लागत को भी कम करती है।

हरित क्रांति 2.0 के उद्देश्य

  1. पर्यावरणीय स्थिरता: रासायनिक इनपुट के उपयोग को कम करके मिट्टी, जल और वायु की गुणवत्ता में सुधार करना।
  2. किसानों की आय में वृद्धि: जैविक उत्पादों की बढ़ती मांग के माध्यम से किसानों को बेहतर मूल्य प्राप्ति सुनिश्चित करना।
  3. खाद्य सुरक्षा: सतत कृषि पद्धतियों के माध्यम से दीर्घकालिक खाद्य उत्पादन को सुनिश्चित करना।
  4. स्वास्थ्य में सुधार: रासायनिक अवशेषों से मुक्त खाद्य पदार्थों के माध्यम से उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य में सुधार करना।

सरकार की पहलें

भारत सरकार ने जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं:

  1. राष्ट्रीय जैविक खेती परियोजना (NPOF): यह परियोजना जैविक खेती के विकास और प्रमाणीकरण में सहायता प्रदान करती है।
  2. परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY): इस योजना का उद्देश्य किसानों को जैविक खेती अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना और जैविक उत्पादों के विपणन में सहायता करना है।
  3. मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना: किसानों को उनकी मिट्टी की गुणवत्ता की जानकारी देकर उपयुक्त फसल चयन और पोषक तत्वों के उपयोग में मार्गदर्शन प्रदान करना।

जैविक खेती के लाभ

  • मृदा की उर्वरता में सुधार: प्राकृतिक खादों के उपयोग से मिट्टी की संरचना और जैविक गतिविधि में सुधार होता है।
  • जल संरक्षण: जैविक खेती में जल की आवश्यकता कम होती है और जल संरक्षण में मदद मिलती है।
  • जैव विविधता का संरक्षण: रासायनिक पदार्थों के अभाव में लाभदायक जीवों और पौधों की विविधता बनी रहती है।
  • स्वास्थ्यवर्धक उत्पाद: रसायनमुक्त खाद्य पदार्थ उपभोक्ताओं के लिए स्वास्थ्यवर्धक होते हैं।

चुनौतियां और समाधान

हालांकि जैविक खेती के कई लाभ हैं, लेकिन इसे अपनाने में कुछ चुनौतियां भी हैं:

  1. उत्पादन में कमी: शुरुआती चरण में उत्पादन में कमी आ सकती है, लेकिन दीर्घकालिक लाभ अधिक होते हैं।
  2. बाजार की पहुंच: जैविक उत्पादों के लिए उचित बाजार और मूल्य प्राप्ति एक चुनौती हो सकती है।
  3. प्रमाणीकरण प्रक्रिया: जैविक प्रमाणीकरण की प्रक्रिया जटिल और समयसाध्य हो सकती है।

समाधान:

  • सरकार और गैर-सरकारी संगठनों द्वारा प्रशिक्षण और जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन।
  • जैविक उत्पादों के लिए विशेष बाजारों और विपणन चैनलों का विकास।
  • प्रमाणीकरण प्रक्रिया को सरल और सुलभ बनाना।

निष्कर्ष

'हरित क्रांति 2.0' के माध्यम से जैविक खेती को बढ़ावा देना भारत की कृषि प्रणाली को अधिक सतत, पर्यावरण-मित्र और लाभदायक बना सकता है। सरकार, किसानों और समाज के संयुक्त प्रयासों से यह संभव है कि हम एक स्वस्थ और समृद्ध भविष्य की ओर बढ़ सकें।

 

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