जैन धर्म: इतिहास, सिद्धांत और आधुनिक समाज में महत्व
जैन धर्म भारत की प्राचीन धार्मिक परंपरा है जो अहिंसा, सत्य और आत्मानुशासन पर आधारित है। जानिए जैन धर्म का इतिहास, सिद्धांत, प्रमुख ग्रंथ और आधुनिक समाज में इसकी प्रासंगिकता।

जैन धर्म: एक परिचय
भारतवर्ष में प्राचीन काल से ही अनेक धार्मिक परंपराएँ विकसित हुई हैं, जिनमें से एक अत्यंत महत्वपूर्ण और अद्भुत परंपरा है — जैन धर्म। सत्य, अहिंसा और आत्मानुशासन पर आधारित यह धर्म न केवल भारत, बल्कि विश्वभर में शांति और सहअस्तित्व का संदेश फैलाता है। आज के इस लेख में हम जानेंगे जैन धर्म का इतिहास, इसके सिद्धांत, मुख्य आचार्य, प्रमुख ग्रंथ, और जैन धर्म का आधुनिक समाज में महत्व।
जैन धर्म का इतिहास
जैन धर्म की उत्पत्ति अत्यंत प्राचीन मानी जाती है। कई विद्वानों के अनुसार, यह वैदिक धर्म से भी पुराना हो सकता है। जैन परंपरा में 24 तीर्थंकरों का उल्लेख मिलता है, जिन्होंने मानवता को मोक्ष का मार्ग दिखाया।
इनमें अंतिम और सबसे प्रसिद्ध तीर्थंकर थे — भगवान महावीर (599 ई.पू. – 527 ई.पू.)। महावीर स्वामी ने जैन धर्म को एक सुव्यवस्थित रूप प्रदान किया और संसार को "त्रिरत्न" (सम्यक् ज्ञान, सम्यक् दर्शन और सम्यक् चरित्र) का उपदेश दिया।
हालांकि महावीर स्वामी को अक्सर जैन धर्म का संस्थापक कहा जाता है, लेकिन स्वयं जैन धर्म महावीर से भी कहीं अधिक प्राचीन है। महावीर से पहले भगवान ऋषभदेव को प्रथम तीर्थंकर माना जाता है।
जैन धर्म के मुख्य सिद्धांत
जैन धर्म के पांच मुख्य सिद्धांत हैं, जिन्हें पंचमहाव्रत कहा जाता है:
1. अहिंसा (अहिंसा परमो धर्मः) — प्राणी मात्र के प्रति करुणा और हिंसा से पूर्ण विरक्ति।
2. सत्य — सच्चाई का पालन करना।
3. अस्तेय — चोरी न करना।
4. ब्रह्मचर्य — संयमित जीवन और इंद्रियों का नियंत्रण।
5. अपरिग्रह — कम से कम भौतिक वस्तुओं में आसक्ति रखना।
इन सिद्धांतों का पालन करके जैन साधक मोक्ष (आत्मा की मुक्ति) की ओर बढ़ता है।
जैन धर्म में त्रिरत्न (Three Jewels)
जैन धर्म के अनुसार, मोक्ष प्राप्त करने के लिए तीन रत्नों का अनुसरण आवश्यक है:
- सम्यक् दर्शन — सत्य को सही प्रकार से देखना।
- सम्यक् ज्ञान — सही और पूर्ण ज्ञान प्राप्त करना।
- सम्यक् चरित्र — सही आचरण और व्यवहार करना।
जब व्यक्ति इन त्रिरत्नों का अनुसरण करता है, तब वह संसार के बंधनों से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त कर सकता है।
जैन धर्म की प्रमुख शाखाएँ
जैन धर्म दो प्रमुख शाखाओं में विभाजित है:
1. दिगंबर (आकाशवासी)
o दिगंबर साधु वस्त्र नहीं पहनते।
o उनके अनुसार केवल निर्वस्त्र साधना से ही मोक्ष संभव है।
o प्रमुख ग्रंथ: "कषाय पाहुड", "समयसार" आदि।
2. श्वेतांबर (श्वेत वस्त्रधारी)
o श्वेतांबर साधु-साध्वी श्वेत वस्त्र धारण करते हैं।
o इनके अनुसार मोक्ष के लिए वस्त्र छोड़ना अनिवार्य नहीं।
o प्रमुख ग्रंथ: "कल्पसूत्र", "आचारांग सूत्र" आदि।
दोनों संप्रदायों के बीच कुछ परंपरागत भेद होने के बावजूद, दोनों का मूल लक्ष्य आत्मा की मुक्ति ही है।
जैन धर्म के प्रमुख ग्रंथ
जैन धर्म के धार्मिक ग्रंथों को "आगम" कहा जाता है। ये महावीर स्वामी की वाणी और उनके शिष्यों द्वारा संकलित शिक्षाओं का संकलन हैं। प्रमुख ग्रंथों में शामिल हैं:
- आचारांग सूत्र
- सूत्रकृतांग
- कल्पसूत्र
- स्वयंभू स्तोत्र
- तत्त्वार्थ सूत्र
इन ग्रंथों में जैन दर्शन, आचार, तप, योग, और मोक्ष के गूढ़ रहस्यों का विस्तृत वर्णन मिलता है।
जैन धर्म में तपस्या और व्रत
तपस्या और व्रत जैन धर्म का मूल आधार हैं। जैन साधु और गृहस्थ दोनों ही तप के द्वारा आत्मा को शुद्ध करने का प्रयास करते हैं। जैन तपस्या में:
- उपवास (पूर्ण उपवास)
- एकासना (दिन में एक बार भोजन)
- सल्लेखना (शांतिपूर्ण मृत्यु का व्रत)
विशेष महत्व रखते हैं। 'पर्युषण पर्व' और 'माहवीर जयंती' जैन धर्म के अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व हैं, जब साधक अधिकाधिक तप और पूजा में लीन रहते हैं।
जैन धर्म और पर्यावरण
आज के युग में जब पर्यावरण संकट गहराता जा रहा है, जैन धर्म की "अहिंसा" की भावना अत्यंत प्रासंगिक हो गई है।
जैन धर्म यह सिखाता है कि प्रत्येक जीव — चाहे वह सूक्ष्म जीवाणु हो या विशाल प्राणी — जीवन का अधिकार रखता है।
इसीलिए जैन साधक अनावश्यक वृक्षों की कटाई, जीवहत्या, और प्राकृतिक संसाधनों के दुरुपयोग से दूर रहते हैं।
आधुनिक युग में जैन धर्म का प्रभाव
आज जैन धर्म के अनुयायी न केवल भारत में, बल्कि अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीका में भी फैले हुए हैं। जैन समुदाय शिक्षा, व्यापार, समाज सेवा और चिकित्सा जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है।
विशेषकर जैन समाज ने अहिंसा, दान और सहिष्णुता के सिद्धांतों का पालन करते हुए वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बनाई है। कई जैन मंदिर जैसे श्रवणबेलगोला (कर्नाटक), पालिताना (गुजरात), और रणकपुर (राजस्थान) स्थापत्य कला के अद्वितीय उदाहरण हैं।
निष्कर्ष
जैन धर्म केवल एक धर्म नहीं, बल्कि एक जीवन शैली है — जो करुणा, आत्म-संयम और पर्यावरण संतुलन पर आधारित है। यह धर्म हमें सिखाता है कि कैसे हम अपने भीतर झाँककर आत्मा को शुद्ध कर सकते हैं और मोक्ष की ओर बढ़ सकते हैं।
आज के समय में जब हिंसा और असहिष्णुता बढ़ रही है, जैन धर्म के सिद्धांत न केवल व्यक्तियों के लिए, बल्कि पूरे समाज और विश्व के लिए प्रकाशपुंज बन सकते हैं।
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