कुंडली में कैसे बनता है शेषनाग कालसर्प दोष? इन उपायों से करें दूर
जानें शेषनाग कालसर्प दोष कैसे बनता है, इसके लक्षण और प्रभाव, साथ ही प्रभावी उपाय जो राहु–केतु के योग को शांत कर जीवन में समृद्धि लाएं।

कुंडली में शेषनाग कालसर्प दोष कैसे बनता है?
जीवन में अनेक प्रकार के योग और दोष होते हैं, जो ग्रहों की स्थितियों पर आधारित होते हैं। इनमें से एक प्रमुख दोष है कालसर्प दोष, जिसका विशेष स्वरूप शेषनाग कालसर्प दोष कहलाता है। यदि आपकी जन्मकुंडली में सभी ग्रहोँ (सूर्य, चंद्र, मंगल, गुरु, शुक्र, शनिदेव, राहु, केतु आदि) राहु–केतु के बीच स्थित हों, तो इसे कालसर्प दोष कहते हैं। जब राहु और केतु का प्रभाव शेषनागाकार बना लेता है, तब इसे शेषनाग कालसर्प दोष कहते हैं।
यह दोष मनुष्यों के जीवन में मानसिक अस्थिरता, अज्ञानता, पारिवारिक कलह, आर्थिक — व्यावसायिक परेशानियाँ, स्वास्थ्य संबंधी जटिलताएँ एवं अन्य बाधाएँ लाता है। परंतु योग का ज्ञान एवं योग्य उपाय करने से इसका प्रभाव कम या समाप्त किया जा सकता है।
1. कालसर्प दोष क्या है?
- राहु एवं केतु: छायाग्रह माने जाते हैं, जो कर्मफल बाँटते हैं। राहु चतुर्थ, पाँचवे, आठवे, बारहवें भावों में बुरा प्रभाव डालता है, जबकि केतु द्वितीय, छठे, सातवें और ग्यारहवें भावों में उत्तम फल देता है।
- कालसर्प योग: जब राहु व केतु 180° पर आकर कुंडली में किसी भी घर की सीमा पर स्थित होते हैं और शेष ग्रह इनके मध्य स्तंभ में अँगुस्ठित हो जाते हैं, तब कालसर्प योग बनता है।
2. शेषनाग कालसर्प दोष का विशेष प्रभाव
शेषनाग रूप में राहु–केतु ग्रहों द्वारा गृहीत सभी ग्रह मानो नाग के फन बने दिखाई देते हैं। आद्य शेषनाग की तरह सारे ग्रह राहु–केतु के केन्द्रीय प्रभाव में बंद हो जाते हैं, जिससे:
- मानसिक अवसाद, असमंजस और स्वयं को असहाय महसूस करना
- पारिवारिक संबंधों में विवाद, दूरी और कलह
- करियर में रुकावट, वित्तीय अनिश्चितता
- स्वास्थ्य खराबी, पुरानी बीमारियों का पुनरुत्थान
- अधूरे कार्य, निवेश-नुकसान और यात्रा संबंधी अड़चनें
3. कुंडली में शेषनाग योग कैसे बनता है?
शेषनाग कालसर्प दोष बनने के लिए निम्नलिखित स्थितियाँ पर्दर्शित होती हैं:
1. राहु–केतु की स्थिति
o राहु एवं केतु एक दूसरे से 180° पर हों।
o ये कुंडली में किसी दो समवर्ती राशियों के स्वामी ग्रहों के द्वारों पर स्थित हों। उदाहरण: राहु मीन राशि के अंतिम चरण में, केतु वृश्चिक राशि के अंतिम चरण में।
2. अन्य ग्रहों की सीमांत स्थिति
o शेष सात ग्रह (सूर्य, चंद्र, मंगल, गुरु, शुक्र, शनि, बुध) राहु–केतु की परिधि के बीच स्थित हों।
o ग्रह किसी भी भाव में हों परन्तु राहु–केतु के बीच अवरुद्ध।
3. दशा एवं अन्तर्दशा का प्रभाव
o यदि जन्मकालीन राहु–केतु परिवर्तन दशा या अन्तर्दशा में हों, तब दोष का प्रभाव तीव्र अनुभव हो सकता है।
4. ग्रहों की दृष्टि
o राहु एवं केतु से इन ग्रहों पर दृष्टि हो, तो दोष और गहरा होता है।
उदाहरण (चित्रात्मक):
राशि चक्र में यदि राहु १२वें घर की सीमा पर एवं केतु ६वें घर की सीमा पर स्थित हों,
और शेष सभी ग्रह ७वें, ८वें, ९वें, १०वें, ११वें व १२वें घरों में उपस्थित हों,
तो शेषनाग कालसर्प दोष बनता है।
4. शेषनाग कालसर्प के प्रकार
शास्त्रों में आठ प्रकार के कालसर्प योग वर्णित हैं:
1. उत्तान कालसर्प
2. अनाथ कालसर्प
3. भद्दा कालसर्प
4. कॉपरा कालसर्प
5. दोभाल कालसर्प
6. व्यास कालसर्प
7. शेषनाग कालसर्प
8. गुंडा कालसर्प
इनमें शेषनाग कालसर्प को श्रेष्ठ माना जाता है, क्योंकि राहु–केतु के परिधि में बंद ग्रहों पर सकारात्मक फल भी उत्पन्न हो सकते हैं यदि ग्रह शक्तिशाली हों।
5. शेषनाग कालसर्प दोष के लक्षण
- बचपन से ही मनोचिकित्सकीय झुकाव, अवसाद, भयभाजन
- करियर में कई बार अचानक रुकावटें
- पारिवारिक जीवन में दरार, संतान संबंधी समस्याएँ
- स्वास्थ्य पर अव्यक्त रोगों का प्रभाव (जैसे पेथोलॉजिकल कंडीशन)
- लंबी दूरी की अनावश्यक यात्राएँ या यात्रा में संकट
6. शेषनाग कालसर्प दोष निवारण के उपाय
शेषनाग कालसर्प दोष के प्रभाव को कम करने हेतु निम्न उपाय अत्यंत प्रभावकारी माने जाते हैं:
1. विशेष मंत्र जाप
o “ॐ नमो नारायणाय” मंत्र का कम से कम १ लाख जप करें।
o “ॐ ऊँ क्लीं करलीलाय नमः” शेषनाग मंत्र का १०८ गुना जाप।
2. राहु–केतु गृह शांति पूजा
o वैदिक पुजारी से राहु–केतु गृह शांति हेतु पंचामृत, हवन, धूप-दीप से पूजन कराएँ।
3. दोनों ग्रहों की दान–पुण्य क्रियाएँ
o राहु दान: काले तिल, काले वस्त्र, काला चावल आदि का दान।
o केतु दान: कुर्कुरे, साबूदाना, चावल और सफेद वस्त्र वृद्धाश्रम या मठोँ में दान करें।
4. विशेष रत्न
o राहु के लिए गोमती चक्र धारण करें।
o केतु के लिए लाख चक्र धारण करें।
o रत्न को सोमवार या शनिवार को विधिवत् व्रत धारण कराएं।
5. दान एवं सेवा
o शनिवार को अपने घर के बाहर कुत्तों को भोजन दें।
o रोगी बच्चों या असहाय वृद्धों की सेवा में समय निकालें।
6. शेषनाग हवन
o ज्योतिषाचार्य से शेषनाग हवन कराएँ, जिसमें ११ प्रकार के औषधीय घटक डाले जाते हैं।
o हवन में शेषनाग की धूप, कुंकुम, चंदन से अर्चना करें।
7. नियमित पूजा एवं यज्ञ
o राहु–केतु के प्रति श्रद्धा रखते हुए नियमित सप्ताहिक पूजा करें।
o गरुड पुराण हवन भी दोष निवारण में सहायक।
8. योग एवं ध्यान
o अग्नि कुंड के समीप अग्निदेव को जल अर्पित करें।
o शेषनाग ध्यान: ध्यान की मुद्रा में शेषनाग को सिर पर कल्पना कर मंत्र उच्चारित करें।
9. गृह परिवर्तन एवं वास्तु सुधार
o घर का उत्तर–पश्चिम कोना राहु–केतु के लिए समर्पित रखें।
o वहाँ पर दो शंख या नाग–प्रतिमाएँ स्थापित करें।
7. नियमित जीवन में ध्यान रखने योग्य बातें
- संयमित भोजन, आरोग्यकर खान-पान।
- सुबह–शाम शिव चालीसा का पाठ।
- परिवार में आपसी संवाद बढ़ाएँ, तनाव कम करें।
- अलंकार और वस्त्रों में पारदर्शिता; काले वस्त्र कम पहनें।
- किसी भी उपाय को तभी प्रारंभ करें जब कुंडली का पूर्णतः मार्गदर्शन ज्योतिषाचार्य ने किया हो।
शेषनाग कालसर्प दोष एक जटिल ज्योतिषीय स्थिति है, परंतु उचित उपाय, यज्ञ–पूजा, दान–पुण्य और योग साधना से इसका प्रभाव कम किया जा सकता है। इन उपायों को नियमित रूप से अपनाकर व्यक्ति जीवन में संतुलन, शांति और समृद्धि ला सकता है।
Disclaimer (अस्वीकरण):
यह लेख केवल सामान्य जानकारी हेतु प्रस्तुत किया गया है। व्यक्तिगत ज्योतिषीय सलाह एवं उपाय के लिए योग्य ज्योतिषाचार्य से अवश्य परामर्श लें।