क्या सच में 'एक लड़का-लड़की कभी दोस्त नहीं हो सकते'? जानें आज के दौर में कितनी फिट बैठती है यह बात
एक लड़का और लड़की सिर्फ दोस्त नहीं हो सकते" — यह कथन वर्षों से चर्चा में है। लेकिन क्या यह विचार आज के समय में भी प्रासंगिक है? आइए जानें इसके पीछे के सामाजिक, मानसिक और व्यवहारिक पहलुओं को।

क्या लड़का-लड़की सिर्फ दोस्त हो सकते हैं?
यह सवाल सदियों से हमारे समाज में गूंजता आया है। फिल्मों, टीवी सीरियल्स और असल ज़िंदगी में कई बार देखा गया है कि जब एक लड़का और लड़की करीब आते हैं, तो समाज उनके रिश्ते को सिर्फ "दोस्ती" मानने को तैयार नहीं होता।
लेकिन क्या वास्तव में ऐसा कोई नियम है कि लड़का और लड़की सिर्फ दोस्त नहीं हो सकते?
समाज की पारंपरिक सोच
हमारे समाज में पारंपरिक सोच यह रही है कि लड़का और लड़की अगर ज्यादा करीब हैं तो वो "सिर्फ दोस्त" नहीं हो सकते। कई बार ये सोच परिवार, रिश्तेदार और यहां तक कि दोस्त भी आगे बढ़ाते हैं।
इसका कारण है कि भारतीय समाज लंबे समय तक लैंगिक दूरी (gender distance) को प्राथमिकता देता रहा है। लड़का-लड़की की दोस्ती को हमेशा शक की नजर से देखा गया, और अक्सर रिश्ते को 'प्रेम संबंध' का रूप दे दिया गया।
वर्तमान समय में सोच में बदलाव
आज के समय में शिक्षा, सोशल मीडिया, ऑफिस कल्चर और सह-शिक्षा के कारण लड़का और लड़की के बीच संवाद और सहयोग सामान्य हो गया है। IT, मीडिया, मेडिकल, शिक्षा जैसे क्षेत्रों में महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही हैं, और ऐसे में स्वस्थ दोस्ती एक ज़रूरत बन गई है।
आज की पीढ़ी इस बात को अच्छे से समझती है कि एक रिश्ता सिर्फ रोमांटिक ही नहीं होता, बल्कि भावनात्मक और मानसिक जुड़ाव भी बिना प्रेम के संभव है।
प्लेटोनिक रिश्ते क्या होते हैं?
"प्लेटोनिक रिलेशनशिप" यानी ऐसा रिश्ता जिसमें गहरी दोस्ती हो लेकिन उसमें कोई रोमांटिक या शारीरिक आकर्षण ना हो। ऐसे रिश्ते बहुत सुंदर होते हैं क्योंकि उनमें भरोसा, सम्मान और समझ होती है।
लड़का-लड़की की दोस्ती अगर प्लेटोनिक है, तो वह उतनी ही मजबूत और स्थायी हो सकती है जितनी दो लड़कों या दो लड़कियों की होती है।
मीडिया और फिल्मों की भूमिका
बॉलीवुड और टेलीविज़न ने भी इस विचार को बढ़ावा दिया कि लड़का-लड़की की दोस्ती आखिरकार प्यार में बदलती है — जैसे "मुझसे दोस्ती करोगे", "कुछ कुछ होता है", "जाने तू... या जाने ना" आदि फिल्मों में दिखाया गया।
लेकिन अब समय बदल रहा है और फिल्में भी इस बदलाव को दर्शाने लगी हैं, जैसे "पिंक", "तुम्बाड" या "छिछोरे" जैसी कहानियों में।
समझ और सीमाओं की ज़रूरत
किसी भी रिश्ते को समझदारी और सीमाओं की ज़रूरत होती है। अगर दोनों व्यक्ति आपस में अपनी सीमाएं तय कर लें, तो दोस्ती लंबे समय तक निभ सकती है, चाहे वे किसी भी जेंडर के हों।
यह ज़रूरी है कि दोनों दोस्त एक-दूसरे के प्रति ईमानदार हों और समाज की सोच से ज़्यादा अपने रिश्ते को महत्व दें।
निष्कर्ष:
तो क्या लड़का और लड़की सिर्फ दोस्त हो सकते हैं? बिलकुल हो सकते हैं।
आज का समाज धीरे-धीरे इस विचार को स्वीकार कर रहा है कि किसी भी रिश्ते की नींव विश्वास, सम्मान और समझ होती है — चाहे वो दोस्ती हो या कुछ और।
लड़का-लड़की की दोस्ती को शक की नजरों से देखना बंद करना होगा, तभी एक स्वस्थ और समतामूलक समाज बन पाएगा।
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