मोहनजोदड़ो का इतिहास: सिन्धु घाटी सभ्यता का अद्भुत नगरीय चमत्कार

जानिए मोहनजोदड़ो का इतिहास, इसकी खोज, अद्भुत नगर योजना, सांस्कृतिक विशेषताएँ और पतन के कारणों के बारे में। एक झलक प्राचीन सिन्धु घाटी सभ्यता की ओर।

मोहनजोदड़ो का इतिहास: सिन्धु घाटी सभ्यता का अद्भुत नगरीय चमत्कार

जब भी हम प्राचीन सभ्यताओं की बात करते हैं, मोहनजोदड़ो का नाम स्वतः ही सामने आता है। सिन्धु घाटी सभ्यता का यह अद्भुत नगर आज भी इतिहास प्रेमियों, पुरातत्वविदों और शोधकर्ताओं के लिए रहस्य और आकर्षण का केंद्र है। मोहनजोदड़ो न केवल प्राचीन नगरीय जीवन का उदाहरण है, बल्कि यह मानव सभ्यता के उस दौर की तस्वीर भी पेश करता है, जब योजनाबद्ध नगर विकास, जल प्रबंधन और सामाजिक संरचना अपने चरम पर थी।

इस लेख में हम मोहनजोदड़ो के इतिहास, खोज, वास्तुकला, संस्कृति और इसके पतन के संभावित कारणों पर विस्तृत चर्चा करेंगे।


मोहनजोदड़ो का परिचय

मोहनजोदड़ो का अर्थ है "मृतकों का टीला"। यह नगर आधुनिक पाकिस्तान के सिंध प्रांत में स्थित है, और यह आज से लगभग 4500 वर्ष पहले, यानी कि 2600 ईसा पूर्व के आसपास अपने स्वर्णिम काल में था। मोहनजोदड़ो, हड़प्पा संस्कृति का सबसे प्रसिद्ध और अत्यंत विकसित नगर था, जो कि सिन्धु नदी के तटीय क्षेत्रों में फला-फूला।

विश्व धरोहर स्थल के रूप में यूनेस्को द्वारा 1980 में मान्यता प्राप्त, मोहनजोदड़ो आज भी प्राचीन दुनिया की सबसे व्यवस्थित नगर सभ्यता के प्रमाण प्रस्तुत करता है।


मोहनजोदड़ो की खोज

मोहनजोदड़ो की खोज का श्रेय राखालदास बनर्जी (R. D. Banerji) को जाता है, जिन्होंने 1922 ईस्वी में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अंतर्गत यहाँ खुदाई करवाई। शुरुआती खुदाइयों में जैसे-जैसे ईंटों की बनी विशाल इमारतें, जल निकासी प्रणालियाँ और सभागृह सामने आए, यह स्पष्ट हो गया कि यह कोई साधारण स्थल नहीं बल्कि एक सुनियोजित प्राचीन नगर है।

इसके बाद सर जॉन मार्शल, के. एन. दीक्षित और अन्य पुरातत्वविदों ने मिलकर मोहनजोदड़ो के विभिन्न हिस्सों की विस्तृत खुदाई करवाई, जिससे इस सभ्यता के अद्भुत स्वरूप का पता चला।


मोहनजोदड़ो का नगर नियोजन

मोहनजोदड़ो का नगर नियोजन अद्भुत था। यह दो मुख्य भागों में विभाजित था:

1.    ऊँचा टीला (Acropolis)प्रशासनिक और धार्मिक गतिविधियों के लिए

2.    नीचला नगर (Lower City)आम नागरिकों के आवासीय क्षेत्र के रूप में

मुख्य विशेषताएँ:

  • सड़कें और गलियाँ: पूरा नगर ईंटों से बनी चौड़ी सड़कों और गलियों से सुसज्जित था, जो ग्रिड पैटर्न में बिछी थीं। सड़कें इतनी चौड़ी थीं कि दो बैलगाड़ियाँ एक साथ निकल सकती थीं।
  • जल निकासी प्रणाली: घरों के बाहर भूमिगत जल निकासी व्यवस्था थी, जो गंदे पानी को बाहर निकालने में मदद करती थी। हर घर में निजी स्नानागार थे।
  • दीवारें और भवन: यहाँ के भवन पक्की ईंटों से बने थे। मकानों में बहुमंजिला संरचनाएँ भी मिलती हैं।
  • महान स्नानागार (Great Bath): मोहनजोदड़ो का सबसे प्रसिद्ध अवशेष 'महान स्नानागार' है, जिसे धार्मिक अनुष्ठानों के लिए प्रयोग किया जाता था। इसका जल प्रबंधन प्रणाली देखकर आज भी आश्चर्य होता है।

संस्कृति और सामाजिक जीवन

मोहनजोदड़ो की संस्कृति उन्नत थी। यहाँ के लोग व्यापार, कृषि, शिल्पकला, धातु विज्ञान, तथा स्थापत्य कला में निपुण थे।

कुछ मुख्य बातें:

  • व्यापार: मोहनजोदड़ो के निवासी मेसोपोटामिया (आधुनिक इराक) जैसे दूर देशों के साथ व्यापार करते थे। मोहरों और मुद्राओं से यह पुष्टि होती है।
  • धर्म: धार्मिक रूप से, यह लोग मातृदेवी (Mother Goddess) और पशुपति (Pashupati - Proto-Shiva) की पूजा करते थे।
  • शिल्पकला: यहाँ से मिट्टी की मूर्तियाँ, मोहरें, आभूषण और धातु की वस्तुएँ मिली हैं। प्रसिद्ध 'नर्तकी की मूर्ति' (Dancing Girl Statue) इसकी कलात्मक श्रेष्ठता का प्रमाण है।
  • भोजन: मुख्य भोजन में गेहूँ, जौ, मटर, तिल और खजूर शामिल थे। पशुपालन भी आम था।

महत्वपूर्ण खोजें

  • महान स्नानागार (Great Bath)
  • नर्तकी की कांस्य मूर्ति (Dancing Girl)
  • यज्ञ वेदी और ग्रेनरी (Granary)
  • सिंधु लिपि (Indus Script)
  • मोहरें और मुद्राएँ (Seals)

इन खोजों से हमें यह जानकारी मिलती है कि मोहनजोदड़ो के लोग न केवल वैज्ञानिक दृष्टि से उन्नत थे, बल्कि उनकी कला और धार्मिक आस्थाएँ भी अत्यंत समृद्ध थीं।


पतन के कारण

अब सवाल उठता है कि इतनी उन्नत सभ्यता का पतन कैसे हुआ?

संभावित कारण:

  • प्राकृतिक आपदाएँ: बार-बार की बाढ़ों ने संभवतः नगर को नष्ट कर दिया। सिन्धु नदी का मार्ग बदलने के भी प्रमाण मिले हैं।
  • सामाजिक विघटन: व्यापार मार्गों के बाधित होने और आंतरिक संघर्षों ने समाज को कमजोर कर दिया।
  • जलवायु परिवर्तन: क्षेत्र में बढ़ती सूखा स्थिति ने कृषि उत्पादन को प्रभावित किया।
  • विदेशी आक्रमण: कुछ सिद्धांतों के अनुसार, आर्यों के आगमन से भी मोहनजोदड़ो का पतन हुआ, हालांकि इसके पक्के प्रमाण नहीं हैं।

मोहनजोदड़ो का वर्तमान

आज मोहनजोदड़ो एक महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल है, लेकिन समय और जलवायु प्रभाव के चलते इसके अवशेष धीरे-धीरे नष्ट हो रहे हैं। सरकार और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियाँ इसके संरक्षण के प्रयास कर रही हैं।

वर्ष 2014 में यूनेस्को ने चेतावनी दी थी कि अगर समय रहते संरक्षण नहीं किया गया तो मोहनजोदड़ो पूरी तरह से नष्ट हो सकता है। सीमित पर्यटन और नियंत्रित खुदाई के माध्यम से अब इसके अस्तित्व को बचाने की कोशिश की जा रही है।

मोहनजोदड़ो केवल एक नगर नहीं था, यह मानव इतिहास के उस युग का प्रतीक है जब सभ्यता ने अपने प्रारंभिक स्वरूप में अद्भुत ऊँचाइयाँ छू ली थीं।
इस नगर के अवशेष आज भी हमें यह सिखाते हैं कि वैज्ञानिक सोच, सामाजिक समरसता और सुनियोजित विकास किस तरह से किसी समाज को समृद्ध बना सकते हैं।

हमें चाहिए कि हम इस धरोहर का संरक्षण करें, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी इस गौरवशाली इतिहास से प्रेरणा ले सकें।