सिंधु जल संधि क्या है? भारत-पाकिस्तान के बीच जल बंटवारे की पूरी कहानी

जानिए सिंधु जल संधि क्या है, इसमें किन नदियों का बंटवारा हुआ, भारत-पाकिस्तान के विवाद और इसके भविष्य की स्थिति। पढ़ें पूरा 1500 शब्दों का ब्लॉग।

सिंधु जल संधि क्या है? भारत-पाकिस्तान के बीच जल बंटवारे की पूरी कहानी

भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों में जहां राजनीतिक और सामरिक मुद्दों को लेकर अक्सर तनाव रहता है, वहीं एक ऐसा क्षेत्र भी है जहां पिछले कई दशकों से एक संतुलन बना हुआ है – और वह है जल संसाधनों का साझा उपयोग। इसका आधार है "सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty)", जो 1960 में हस्ताक्षरित हुई थी।

इस ब्लॉग में हम विस्तार से जानेंगे कि सिंधु जल संधि क्या है, यह कैसे अस्तित्व में आई, इसमें कौन-कौन से प्रावधान हैं, इसका अब तक का असर क्या रहा है, और भविष्य के लिए यह कितनी प्रासंगिक है।


 सिंधु जल संधि क्या है?

सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty - IWT) भारत और पाकिस्तान के बीच एक द्विपक्षीय जल समझौता है, जिसे 19 सितंबर 1960 को भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल अय्यूब खान ने विश्व बैंक की मध्यस्थता में हस्ताक्षरित किया था।

इस संधि के तहत, भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु नदी प्रणाली की 6 प्रमुख नदियों का जल विभाजित किया गया।


 कौन-कौन सी नदियाँ शामिल हैं?

सिंधु नदी प्रणाली में कुल 6 नदियाँ हैं:

  • पूर्वी नदियाँ:
    • रावी (Ravi)
    • ब्यास (Beas)
    • सतलुज (Sutlej)
  • पश्चिमी नदियाँ:
    • सिंधु (Indus)
    • झेलम (Jhelum)
    • चेनाब (Chenab)

 जल बंटवारा कैसे हुआ?

पूर्वी नदियाँ – भारत को पूर्ण अधिकार

  • रावी, ब्यास और सतलुज नदियों का लगभग 20% जल भारत को दिया गया।
  • भारत को इन नदियों पर जल भंडारण, नहर निर्माण और बिजली उत्पादन के पूर्ण अधिकार मिले।

पश्चिमी नदियाँ – पाकिस्तान को प्रमुखता

  • सिंधु, झेलम और चेनाब नदियों का 80% से अधिक जल पाकिस्तान को दिया गया।
  • भारत इन नदियों का जल सिर्फ गैर-खपत परियोजनाओं (जैसे कि रन ऑफ द रिवर हाइड्रोपावर, सिंचाई, घरेलू उपयोग) के लिए उपयोग कर सकता है।

 सिंधु जल संधि क्यों की गई थी?

विभाजन की पृष्ठभूमि:

1947 में भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के समय, सिंधु नदी प्रणाली की अधिकांश स्रोत नदियाँ भारत में थीं, जबकि इनका बहाव पाकिस्तान की भूमि से होता था। इससे जल संकट की संभावना उत्पन्न हो गई थी।

1948 में भारत ने पाकिस्तान की कुछ नहरों को जल आपूर्ति रोक दी थी, जिससे तनाव और युद्ध जैसी स्थिति पैदा हो गई थी। इस परिस्थिति को हल करने के लिए विश्व बैंक ने मध्यस्थता की पेशकश की और लंबे वार्तालाप के बाद 1960 में यह समझौता हुआ।


 सिंधु जल संधि के प्रमुख प्रावधान

1.    जल वितरण का स्पष्ट बंटवारा

o   पूर्वी नदियाँ भारत को, पश्चिमी नदियाँ पाकिस्तान को।

2.    भारत की सीमित गतिविधियाँ

o   भारत पश्चिमी नदियों पर बड़े बांध या जलाशय नहीं बना सकता।

o   केवल सीमित मात्रा में सिंचाई और बिजली उत्पादन की अनुमति है।

3.    निगरानी तंत्र

o   एक स्थायी सिंधु आयोग (Permanent Indus Commission) स्थापित किया गया है जिसमें भारत और पाकिस्तान के एक-एक आयुक्त होते हैं।

o   आयोग साल में कम से कम एक बार बैठक करता है और नियमित सूचनाओं का आदान-प्रदान करता है।

4.    विवाद समाधान प्रणाली

o   यदि किसी परियोजना को लेकर विवाद होता है तो पहले आयोग स्तर पर, फिर विशेषज्ञ समिति, और अंतिम रूप से अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता अदालत में मामला जाता है।


 सिंधु जल संधि के लाभ

  • यह संधि आज तक दोनों देशों के बीच सबसे स्थिर समझौतों में से एक रही है।
  • तीन युद्धों (1965, 1971, 1999) और कई बार संबंध खराब होने के बावजूद, संधि लगातार लागू रही।
  • पाकिस्तान की कृषि और सिंचाई प्रणाली इस संधि पर काफी निर्भर है।
  • भारत ने भी इसे अंतरराष्ट्रीय दायित्वों की निष्ठा का उदाहरण माना है।

 विवाद और चुनौतियाँ

हालांकि संधि स्थिर रही है, फिर भी समय-समय पर विवाद उत्पन्न होते रहे हैं:

1. बांध निर्माण पर विवाद

  • भारत द्वारा बगलीहार डैम (Baglihar Dam) और किशनगंगा परियोजना जैसे प्रोजेक्ट्स पर पाकिस्तान ने आपत्ति जताई।
  • मामला World Bank Arbitration Court तक पहुंचा।

2. राजनीतिक दबाव

  • उरी हमले (2016) और पुलवामा हमले (2019) के बाद भारत में आवाज़ें उठीं कि भारत को संधि तोड़ देनी चाहिए और पाकिस्तान की जल आपूर्ति रोक देनी चाहिए।

3. जलवायु परिवर्तन

  • ग्लेशियरों के पिघलने और बारिश के बदलते पैटर्न से नदी प्रणाली में अनिश्चितता बढ़ी है।

4. निगरानी की पारदर्शिता

  • पाकिस्तान भारत पर आरोप लगाता रहा है कि उसे परियोजनाओं की पूरी जानकारी नहीं दी जाती।

 क्या भारत सिंधु जल संधि तोड़ सकता है?

भारत संधि से हट सकता है, लेकिन यह कदम अंतरराष्ट्रीय कानूनों और कूटनीतिक दायित्वों के तहत जटिल है। इससे भारत की वैश्विक छवि प्रभावित हो सकती है। भारत ने अब तक संधि का सम्मान किया है।

हालांकि, भारत पश्चिमी नदियों पर अपने अधिकारों का अधिकतम उपयोग करने की योजना बना रहा है, जैसे:

  • छोटी जलविद्युत परियोजनाएं
  • माइक्रो-इरिगेशन सिस्टम
  • जल संरक्षण उपाय

 सिंधु जल संधि का भविष्य

आज, जब जल संकट एक वैश्विक मुद्दा बनता जा रहा है, सिंधु जल संधि का महत्व और बढ़ गया है। दोनों देशों को चाहिए कि:

  • आपसी संवाद को मजबूत करें
  • पर्यावरणीय पहलुओं को ध्यान में रखें
  • तकनीकी सहयोग और डेटा साझा करें

सिंधु जल संधि न केवल एक जल समझौता है, बल्कि यह शांति, संयम और कूटनीतिक संतुलन का प्रतीक भी है। भारत और पाकिस्तान के बीच कई असहमति के मुद्दे रहे हैं, परंतु सिंधु जल संधि यह दिखाती है कि विवादों के बीच भी सहयोग के रास्ते निकाले जा सकते हैं

जल भविष्य का सबसे कीमती संसाधन है। इस संधि को समयानुसार पुनर्मूल्यांकन और आधुनिक तकनीक के साथ उन्नत करना, दोनों देशों के हित में है।


 Disclaimer:

यह लेख केवल जानकारी प्रदान करने के उद्देश्य से लिखा गया है। इसमें दी गई जानकारियाँ विभिन्न सार्वजनिक स्रोतों और आधिकारिक रिपोर्ट्स पर आधारित हैं। कृपया किसी भी कानूनी या नीतिगत निर्णय से पहले संबंधित सरकारी या विशेषज्ञ स्रोत से परामर्श अवश्य लें।

 

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