कब है सीता नवमी 2025? जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, व्रत कथा और धार्मिक महत्व
सीता नवमी 2025 में 7 मई को मनाई जाएगी। जानिए इस विशेष दिन का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, व्रत कथा और इसका धार्मिक महत्व। मां सीता की कृपा पाने का ये सुनहरा अवसर न चूकें।

कब मनाई जाएगी सीता नवमी? जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, महत्व और कथा
भारतीय पंचांग में प्रत्येक तिथि का धार्मिक महत्व होता है, और सीता नवमी भी उनमें से एक है। यह पर्व मां सीता के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है, जिन्हें जन्मों की जननी, भारतीय नारी की प्रतीक और धैर्य व पवित्रता की देवी माना जाता है। सीता नवमी को जानकी नवमी और सीता जयंती भी कहा जाता है।
सीता नवमी 2025: तिथि और मुहूर्त
तिथि:
सीता नवमी हर साल वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाई जाती है। यह पर्व रामनवमी के एक महीने बाद आता है।
सीता नवमी 2025 की तिथि:
7 मई 2025, बुधवार
नवमी तिथि आरंभ: 6 मई 2025 को रात 08:45 बजे
नवमी तिथि समाप्त: 7 मई 2025 को रात 07:22 बजे
पूजा का शुभ मुहूर्त:
7 मई को सुबह 06:00 बजे से दोपहर 01:00 बजे तक पूजा करना श्रेष्ठ माना गया है।
सीता नवमी का धार्मिक महत्व
माता सीता को भूमि पुत्री माना जाता है। रामायण के अनुसार, राजा जनक ने उन्हें हल चलाते समय धरती से प्राप्त किया था। अतः उन्हें धरित्री या भूमिजा भी कहा जाता है।
सीता नवमी का पर्व नारी शक्ति, पवित्रता, समर्पण, त्याग और संयम का प्रतीक है।
यह दिन उन महिलाओं के लिए विशेष होता है जो अपने वैवाहिक जीवन में सुख, संतान प्राप्ति और गृह शांति की कामना करती हैं।
पूजा विधि (सीता नवमी पूजन कैसे करें)
1. स्नान और संकल्प:
सुबह ब्रह्ममुहूर्त में स्नान करें, पीले वस्त्र पहनें और व्रत का संकल्प लें।
2. कलश स्थापना:
घर के पूजन स्थल पर स्वच्छ मिट्टी में जौ या गेहूं बोकर कलश स्थापित करें। उस पर आम या अशोक के पत्ते रखें।
3. मां सीता की प्रतिमा या चित्र की स्थापना:
सीता माता, भगवान राम, लक्ष्मण और हनुमान की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
4. पूजन सामग्री:
रोली, अक्षत, पुष्प, फल, मिश्री, पंचामृत, दीपक, धूप, और तुलसी पत्ता रखें।
5. पूजन और मंत्र:
- "ॐ सीतायै नमः" मंत्र का जाप करें।
- सीता माता की अष्टोत्तर शतनामावली का पाठ करें।
- "सीता राम चरित" या "रामायण" का पाठ करना विशेष फलदायी होता है।
6. आरती और भजन:
सीता माता और भगवान श्रीराम की आरती करें, भजन गायें और प्रसाद वितरण करें।
7. ब्राह्मण भोजन और दान:
पूजा के बाद ब्राह्मण को भोजन कराकर वस्त्र, अनाज या धन का दान करें।
व्रत विधि
सीता नवमी पर महिलाएं व्रत रखती हैं, विशेष रूप से विवाहित स्त्रियां। यह व्रत निर्जल, फलाहारी या सामान्य उपवास हो सकता है।
व्रत रखने वाली स्त्रियों को इस दिन झूठ, कटु वचन, और नकारात्मक विचारों से बचना चाहिए।
पौराणिक कथा (सीता जयंती की कथा)
त्रेतायुग में मिथिला नगरी के राजा जनक एक बार अकाल से परेशान थे। उन्होंने यज्ञ करने का संकल्प लिया और स्वयं हल चलाकर भूमि तैयार कर रहे थे। तभी हल की नोंक से उन्हें एक सोने की पेटी मिली, जिसमें एक कन्या शिशु था।
राजा जनक ने उस कन्या को पुत्री रूप में स्वीकार किया और उसका नाम सीता रखा। बाद में वह भगवान राम की अर्धांगिनी बनीं और धरती पर आदर्श स्त्री के रूप में प्रतिष्ठित हुईं।
सीता नवमी का सामाजिक संदेश
सीता नवमी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि भारतीय समाज को नारी शक्ति के सम्मान और नारी मर्यादा का सन्देश भी देती है।
मां सीता ने अपने जीवन में जितनी विपत्तियाँ झेलीं, उतनी ही धैर्य, साहस और संयम से उन्हें पार किया।
सीता नवमी पर क्या करें और क्या न करें?
क्या करें:
- व्रत और पूजा पूरी श्रद्धा से करें
- मातृशक्ति का सम्मान करें
- घर में शांति और पवित्रता बनाए रखें
- धार्मिक ग्रंथों का पाठ करें
क्या न करें:
- क्रोध, निंदा, झूठ और अहंकार से बचें
- व्रत के दिन तामसिक भोजन न करें
- किसी भी स्त्री का अपमान न करें
निष्कर्ष
सीता नवमी एक पवित्र और आध्यात्मिक पर्व है, जो हमें जीवन में मर्यादा, धैर्य और प्रेम का सन्देश देता है। यह दिन महिलाओं के लिए विशेष रूप से फलदायी होता है। माता सीता की पूजा और व्रत के माध्यम से न केवल हम पुण्य अर्जित करते हैं, बल्कि पारिवारिक और मानसिक शांति भी प्राप्त करते हैं।
आप भी इस सीता नवमी व्रत को अपनाकर अपने जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और सौभाग्य को आमंत्रित करें।
सीते रामचरित अति पावन, पूजत लोक सभी नर-नारी।
हरो संकट जननी भवानी, सुख सम्पत्ति दे सुखकारी।