सूरदास जयंती 2025: जानिए तिथि, महत्व और पढ़ें सूरदास जी के अमर दोहे
सूरदास जयंती 2025 इस बार 2 मई को मनाई जाएगी। जानिए सूरदास जी का जीवन परिचय, उनकी भक्ति से ओतप्रोत रचनाएं और पढ़ें उनके अमर दोहे जो आज भी कृष्ण भक्ति की प्रेरणा देते हैं।

संत सूरदास, जिनकी दृष्टि नहीं थी परंतु उनके भीतर एक दिव्य दृष्टि थी, उन्होंने श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं को ऐसा जीवंत वर्णन दिया कि आज भी भक्त उन्हें सुनकर भाव-विभोर हो जाते हैं। सूरदास जयंती हर वर्ष वैशाख माह में शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाई जाती है। आइए जानें कि सूरदास जयंती 2025 में कब मनाई जाएगी, सूरदास का जीवन, उनके दोहे और इस दिन का आध्यात्मिक महत्व क्या है।
सूरदास जयंती 2025: कब है?
- तिथि: शुक्रवार, 2 मई 2025
- पर्व: सूरदास जयंती (547वीं जयंती)
- पंचांग के अनुसार: वैशाख शुक्ल पंचमी
इस दिन देशभर के मंदिरों में सूरदास जी की वाणी और श्रीकृष्ण के भजन गाए जाते हैं। विशेष रूप से वृंदावन, मथुरा और गोवर्धन क्षेत्रों में इस दिन का बहुत महत्व होता है।
???? सूरदास जी का जीवन परिचय
- जन्म: 1478 ईस्वी (कुछ स्रोतों के अनुसार सीही गाँव, हरियाणा में)
- मृत्यु: 1581 ईस्वी
- सम्प्रदाय: पुष्टिमार्ग, वल्लभाचार्य जी के शिष्य
- मुख्य रचना: सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य लहरी
सूरदास जन्म से ही दृष्टिहीन थे। लेकिन उनकी अंतरात्मा से निकली रचनाएँ दिव्य थीं। वे श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन रहते थे। उनकी काव्यशैली वात्सल्य भाव से परिपूर्ण है, जो बालकृष्ण की लीलाओं को अत्यंत सजीव ढंग से प्रस्तुत करती है।
सूरदास के अमर दोहे और पद
सूरदास जी के दोहे ना केवल भक्ति की मिसाल हैं बल्कि उनमें गहन भावनात्मक और दार्शनिक संदेश भी होते हैं। आइए देखें उनके कुछ कालजयी दोहे:
1. "मैया मोहि दाऊ बहुत खिझायो"
"मैया मोहि दाऊ बहुत खिझायो। मो की कहि को लीनो तू जसुमति को जायो।।"
इस पद में बालकृष्ण अपनी मां से दाऊ (बलराम) की शिकायत कर रहे हैं। यह बाल लीलाओं की मिठास से भरपूर है।
2. "अबिगत गति कछु कहत न आवै"
"अबिगत गति कछु कहत न आवै, ज्यों गूंगे मीठे फल की रस अंतर्गत ही भावै।"
यह गूढ़ अनुभव का वर्णन है जो केवल अनुभूत किया जा सकता है, कह नहीं सकते।
3. "मन न भए दस-बीस"
"मन न भए दस-बीस, एक हुतो सो गयो श्याम संग, को अवराधै ईस।"
मन एक है, और यदि वह श्रीकृष्ण में ही समर्पित हो गया है, तो उसमें अन्य के लिए स्थान नहीं बचता।
4. "लाली मेरे लाल की, जित देखूं तित लाल"
"लाली मेरे लाल की, जित देखूं तित लाल, लाली देखन मैं गई, मैं भी हो गई लाल।"
यहाँ सूरदास ने प्रेम और भक्ति का सुंदर स्वरूप दर्शाया है, जहाँ भक्त स्वयं ईश्वर में रंग जाता है।
???? सूरदास की रचनाओं की विशेषताएँ
- वात्सल्य भाव का गहन चित्रण: श्रीकृष्ण के बाल रूप की लीलाएँ।
- भक्ति का सहज मार्ग: वल्लभाचार्य के पुष्टिमार्ग का अनुसरण।
- साहित्यिक योगदान: हिंदी साहित्य में ब्रज भाषा का गौरव बढ़ाया।
उनकी रचनाओं में रस, अलंकार, भाव और माधुर्य इतनी गहराई से भरे हुए हैं कि पढ़ते हुए पाठक भी उस युग में पहुँच जाता है।
सूरदास जयंती का आध्यात्मिक महत्व
सूरदास जयंती केवल एक साहित्यिक उत्सव नहीं है, यह एक आध्यात्मिक जागरण का पर्व भी है। इस दिन श्रद्धालु निम्न प्रकार से सूरदास जी को स्मरण करते हैं:
- सूरदास जी के पदों का पाठ
- कृष्ण लीला नृत्य और नाटिका
- भजन-कीर्तन का आयोजन
- मंदिरों में विशेष आरती और पूजन
यह दिन हमें यह सिखाता है कि शारीरिक अंधकार भी ज्ञान और भक्ति के उजाले को नहीं रोक सकता।
???? सूरदास और श्रीकृष्ण भक्ति
सूरदास जी की भक्ति ऐसी थी कि उन्होंने भगवान को अपने हृदय में बैठा लिया था। उन्होंने कृष्ण को न केवल ईश्वर के रूप में पूजा बल्कि मित्र, बालक, प्रेमी और सर्वस्व के रूप में देखा। उनकी भक्ति "साख्य भाव" और "वात्सल्य भाव" का सुंदर मिश्रण है।
सूरदास जयंती पर हम सिर्फ एक संत-कवि को याद नहीं करते, बल्कि हम काव्य, भक्ति और भूतपूर्व भारतीय सांस्कृतिक धरोहर को नमन करते हैं। सूरदास जी की दृष्टि से रहित आंखें हमें यह सिखाती हैं कि देखने के लिए आंखों की नहीं, भक्ति और प्रेम की आवश्यकता होती है।
कैसे मनाएं सूरदास जयंती 2025?
- प्रातः सूरदास जी के पदों का पाठ करें
- श्रीकृष्ण की मूर्ति पर झूला झुलाएं, भोग लगाएं
- घर में भजन-कीर्तन या संगीत संध्या रखें
- बच्चों को सूरदास की कहानियाँ सुनाएँ
सूरदास जयंती 2025 का यह पर्व हम सभी को यह प्रेरणा देता है कि भक्ति, प्रेम और साधना के मार्ग पर चलकर हम भी अपने जीवन को धन्य बना सकते हैं।
"सूरदास की यह अमूल्य वाणी, हमें सिखाती है कि कृष्ण भक्ति में डूब जाना ही सच्चा जीवन है।"
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