International Labour Day 2025: मजदूरों की जिंदगी पर बनी हैं ये फिल्में, परदे पर दिखीं मेहनतकशों की दुश्वारियां
मजदूर दिवस 2025 के अवसर पर जानिए उन फिल्मों के बारे में जो मजदूरों की जिंदगी, संघर्षों और समस्याओं को परदे पर लाती हैं।

हर साल 1 मई को अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाया जाता है, जो श्रमिकों के अधिकारों, संघर्षों और योगदान को सम्मानित करने का दिन है। भारतीय सिनेमा ने भी समय-समय पर मजदूर वर्ग की जिंदगी, उनकी कठिनाइयों और संघर्षों को परदे पर उतारा है। इन फिल्मों ने न केवल मनोरंजन किया है, बल्कि समाज में जागरूकता भी फैलाई है। इस लेख में हम ऐसी ही कुछ प्रमुख फिल्मों पर चर्चा करेंगे जो मजदूरों की जिंदगी को दर्शाती हैं।
1. दो बीघा ज़मीन (1953)
बिमल रॉय द्वारा निर्देशित यह फिल्म भारतीय सिनेमा की एक क्लासिक कृति है। यह कहानी एक गरीब किसान शंभू की है, जो अपनी दो बीघा जमीन को बचाने के लिए संघर्ष करता है। फिल्म में बालराज साहनी ने शंभू की भूमिका निभाई है, जो अपने परिवार के लिए रिक्शा चलाने लगता है। यह फिल्म ग्रामीण मजदूरों की कठिनाइयों और शोषण को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करती है।
2. दीवार (1975)
यश चोपड़ा द्वारा निर्देशित और अमिताभ बच्चन द्वारा अभिनीत यह फिल्म दो भाइयों की कहानी है, जिनमें से एक मजदूर संघ का नेता बनता है। फिल्म में मजदूरों के शोषण, हड़तालों और उनके संघर्षों को दिखाया गया है। यह फिल्म उस समय के सामाजिक और आर्थिक परिवेश को दर्शाती है।
3. काला पत्थर (1979)
यश चोपड़ा की एक और फिल्म, जिसमें कोयला खदानों में काम करने वाले मजदूरों की जिंदगी को दिखाया गया है। फिल्म में अमिताभ बच्चन, शशि कपूर और शत्रुघ्न सिन्हा ने मुख्य भूमिकाएं निभाई हैं। यह फिल्म मजदूरों के खतरनाक कार्यस्थलों और उनके संघर्षों को उजागर करती है।
4. सिटी ऑफ गोल्ड (2010)
महेश मांजरेकर द्वारा निर्देशित यह फिल्म मुंबई के मिल मजदूरों की कहानी है। यह फिल्म मिलों के बंद होने और उसके बाद मजदूरों की जिंदगी में आए बदलावों को दर्शाती है। फिल्म में मजदूरों के संघर्ष, हड़तालों और उनके परिवारों की कठिनाइयों को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया गया है।
5. 1232 KMS (2021)
विनोद कापड़ी द्वारा निर्देशित यह डॉक्यूमेंट्री फिल्म COVID-19 महामारी के दौरान प्रवासी मजदूरों की दुश्वारियों को दिखाती है। फिल्म में सात मजदूरों की कहानी है, जो लॉकडाउन के दौरान दिल्ली से अपने गांव बिहार तक 1232 किलोमीटर की यात्रा साइकिल से करते हैं। यह फिल्म मजदूरों की मजबूरी और समाज की उदासीनता को उजागर करती है।
6. मैटो की साइकिल (2022)
एम. गनी द्वारा निर्देशित यह फिल्म एक दिहाड़ी मजदूर मैटो की कहानी है, जो अपनी साइकिल के माध्यम से काम पर जाता है। जब उसकी साइकिल टूट जाती है, तो उसकी जिंदगी में कई कठिनाइयां आती हैं। यह फिल्म ग्रामीण मजदूरों की जिंदगी और उनकी समस्याओं को संवेदनशीलता से प्रस्तुत करती है।
7. अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है (1980)
सईद अख्तर मिर्जा द्वारा निर्देशित यह फिल्म एक युवा कार मैकेनिक अल्बर्ट पिंटो की कहानी है, जो समाज में हो रहे अन्याय और शोषण से गुस्से में है। फिल्म में मजदूरों की समस्याओं, उनके गुस्से और उनके संघर्षों को दिखाया गया है।
8. मशीन (2016)
राहुल जैन द्वारा निर्देशित यह डॉक्यूमेंट्री फिल्म गुजरात की एक कपड़ा फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूरों की जिंदगी को दिखाती है। फिल्म में मजदूरों की कठिनाइयों, शोषण और उनके कार्यस्थल की स्थितियों को बिना किसी संवाद के प्रस्तुत किया गया है।
9. विसरणै (2015)
वेत्रिमारन द्वारा निर्देशित यह तमिल फिल्म चार मजदूरों की कहानी है, जिन्हें पुलिस गलत आरोपों में गिरफ्तार कर लेती है। फिल्म में पुलिस की बर्बरता और मजदूरों की बेबसी को दिखाया गया है। यह फिल्म मजदूरों के अधिकारों और न्याय प्रणाली की खामियों को उजागर करती है।
10. ऑल वी इमैजिन ऐज़ लाइट (2023)
पायल कपाड़िया द्वारा निर्देशित यह फिल्म मुंबई की तीन महिला स्वास्थ्यकर्मियों की कहानी है। फिल्म में उनके व्यक्तिगत जीवन, समाजिक दबावों और उनके संघर्षों को दिखाया गया है। यह फिल्म महिलाओं के नजरिए से मजदूर वर्ग की समस्याओं को प्रस्तुत करती है।
भारतीय सिनेमा ने समय-समय पर मजदूर वर्ग की जिंदगी, उनके संघर्षों और समस्याओं को परदे पर उतारा है। इन फिल्मों ने न केवल मनोरंजन किया है, बल्कि समाज में जागरूकता भी फैलाई है। मजदूर दिवस के अवसर पर इन फिल्मों को देखकर हम मजदूरों के संघर्षों को समझ सकते हैं और उनके प्रति सम्मान प्रकट कर सकते हैं।
Disclaimer
यह लेख केवल जानकारी प्रदान करने के उद्देश्य से लिखा गया है। फिल्मों के विवरण और विश्लेषण लेखक के व्यक्तिगत दृष्टिकोण पर आधारित हैं।