नृसिंह अवतार पौराणिक कथा: प्रह्लाद भक्त और अधर्मी हिरण्यकश्यप की अद्भुत कथा
जानिए भगवान विष्णु के नृसिंह अवतार की अद्भुत पौराणिक कथा, कैसे भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए भगवान ने लिया आधा सिंह और आधा मानव रूप।

सनातन धर्म की पौराणिक कथाओं में भगवान विष्णु के दस प्रमुख अवतारों (दशावतार) में से एक है — नृसिंह अवतार, जो अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक है। यह अवतार तब हुआ जब हिरण्यकश्यप नामक अत्याचारी असुर राजा ने अपने ही पुत्र, विष्णुभक्त प्रह्लाद को मारने का प्रयास किया। तब भगवान विष्णु ने मानव और सिंह का अद्भुत मिश्रण रूप धारण कर संसार को यह बताया कि कोई भी शक्ति ईश्वर के भक्त की रक्षा करने से उन्हें रोक नहीं सकती।
हिरण्यकश्यप का अत्याचार
हिरण्यकश्यप, दैत्यराज हिरण्याक्ष का भाई था, जिसे भगवान विष्णु ने वराह अवतार में मार डाला था। हिरण्यकश्यप को इस बात का बहुत क्रोध था और उसने प्रतिज्ञा ली कि वह भगवान विष्णु से बदला लेगा और स्वयं को भगवान घोषित करेगा।
इसके लिए उसने कठिन तप किया और ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त किया। उसने यह वरदान मांगा:
- न उसे कोई मनुष्य मार सके, न पशु।
- न दिन में, न रात में।
- न आकाश में, न पृथ्वी पर।
- न घर के अंदर, न बाहर।
- न किसी शस्त्र से मारा जाए।
इस वरदान के अभिमान में हिरण्यकश्यप ने अत्याचार करना शुरू कर दिया और स्वयं को भगवान कहकर लोगों से पूजा करवाने लगा।
प्रह्लाद – भगवान विष्णु का परम भक्त
हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद, भगवान विष्णु का परम भक्त था। वह सदैव ‘नारायण नारायण’ का जप करता था। यह बात हिरण्यकश्यप को बिल्कुल सहन नहीं होती थी। उसने प्रह्लाद को बार-बार समझाया कि वह विष्णु की भक्ति छोड़ दे, लेकिन प्रह्लाद नहीं माना।
आखिरकार, हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने के कई प्रयास किए —
- उसे ऊंची पहाड़ी से गिराया गया,
- जहरीले सांपों के बीच डाला गया,
- आग में जलाने का प्रयास किया गया (यहीं से होलिका दहन की परंपरा शुरू हुई),
लेकिन हर बार भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित बच जाता।
नृसिंह अवतार का प्रकट होना
एक दिन हिरण्यकश्यप ने क्रोध में आकर प्रह्लाद से पूछा,
"क्या तेरा विष्णु इस खंभे में भी है?"
प्रह्लाद ने शांत भाव से उत्तर दिया,
"हाँ, वह तो सर्वत्र व्याप्त है।"
हिरण्यकश्यप ने तुरंत खंभे पर प्रहार किया और उसी क्षण उस खंभे से भगवान विष्णु नृसिंह रूप में प्रकट हुए —
- आधे मानव और आधे सिंह के रूप में
- विकराल रूप, सिंह का चेहरा और मानव की काया
यह रूप न किसी मनुष्य का था, न पशु का। नृसिंह भगवान ने हिरण्यकश्यप को दहलीज़ पर (न घर के अंदर, न बाहर), संध्या समय (न दिन, न रात), अपनी गोद में (न आकाश में, न पृथ्वी पर) रखकर अपने नखों (न शस्त्र) से चीरकर मार डाला।
भगवान की लीला और वरदानों का सम्मान
भगवान नृसिंह का यह अवतार न केवल अधर्मी का विनाश था बल्कि उन्होंने ब्रह्मा द्वारा दिए गए वरदान का सम्मान करते हुए हर शर्त का पालन किया और बताया कि ईश्वर अपनी लीला से सब कुछ संभव कर सकते हैं।
प्रह्लाद की विजय और धर्म की स्थापना
हिरण्यकश्यप की मृत्यु के बाद भगवान नृसिंह का गुस्सा शांत नहीं हो रहा था। देवताओं ने प्रयास किया, लेकिन कोई उन्हें शांत नहीं कर पाया। अंततः प्रह्लाद ने भगवान की स्तुति की, उन्हें शरणागत भाव से स्मरण किया और भगवान नृसिंह ने अपने भक्त को गले लगा लिया।
यह दर्शाता है कि सच्ची भक्ति, निःस्वार्थ प्रेम और विश्वास ईश्वर को प्रसन्न कर सकते हैं।
नृसिंह स्तुति
प्रह्लाद द्वारा गाई गई नृसिंह स्तुति आज भी भक्तों द्वारा संकट के समय में की जाती है:
उग्रं वीरं महा विष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्।
नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्युं मृत्युं नमाम्यहम्॥
अर्थात: मैं उस नृसिंह भगवान को नमस्कार करता हूं जो उग्र, वीर, सर्वव्यापक, दाहक, भयंकर और मृत्यु को भी समाप्त करने वाले हैं।
नृसिंह जयंती का महत्व
नृसिंह जयंती भगवान नृसिंह के अवतरण दिवस के रूप में मनाई जाती है। यह वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को होती है। इस दिन उपवास, पूजन और भगवान नृसिंह की कथा श्रवण करने से सभी प्रकार के भय दूर होते हैं, विशेष रूप से शत्रु भय, रोग भय, और अकाल मृत्यु के डर से मुक्ति मिलती है।
आध्यात्मिक संदेश
- भगवान नृसिंह का अवतार हमें सिखाता है कि अधर्म चाहे कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, धर्म और भक्ति की जीत अवश्य होती है।
- यह अवतार यह भी दर्शाता है कि ईश्वर अपने भक्त की रक्षा के लिए समय, स्थान, शरीर और नियमों से परे जाकर कार्य करते हैं।
नृसिंह अवतार की यह पौराणिक कथा आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी प्राचीन काल में थी। जब भी कोई भक्त संकट में होता है, ईश्वर उसकी रक्षा करते हैं — यह विश्वास ही भक्ति का मूल है। यदि जीवन में विश्वास, श्रद्धा और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा चाहिए, तो भगवान नृसिंह की यह कथा एक अमूल्य मार्गदर्शक है।
Disclaimer (अस्वीकरण):
यह लेख पौराणिक मान्यताओं और धार्मिक ग्रंथों पर आधारित है। इसमें दी गई जानकारी धार्मिक विश्वासों और जनश्रुतियों पर आधारित है, जिसका उद्देश्य केवल जानकारी प्रदान करना है। किसी भी धार्मिक अनुष्ठान या उपाय को अपनाने से पहले विशेषज्ञ या आचार्य की सलाह अवश्य लें।