श्री विष्णु सहस्रनाम स्तोत्र – भगवान विष्णु के 1000 नामों की दिव्य महिमा
विष्णु सहस्रनाम स्तोत्र का संपूर्ण पाठ, अर्थ और लाभ हिंदी में। जानिए भगवान विष्णु के 1000 पावन नाम, उनके पाठ की विधि और इससे मिलने वाले आध्यात्मिक लाभ।

विष्णु सहस्रनाम स्तोत्र: दिव्यता, शक्ति और भक्ति का अद्भुत संगम
विष्णु सहस्रनाम स्तोत्र सनातन धर्म का एक अत्यंत पवित्र, दिव्य और शक्तिशाली स्तोत्र है, जिसमें भगवान विष्णु के एक हजार नामों का वर्णन है। इसे महाभारत के अनुशासन पर्व में भीष्म पितामह ने शरशैया पर लेटे हुए युधिष्ठिर को उपदेश स्वरूप सुनाया था। यह स्तोत्र न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि मानसिक शांति, आध्यात्मिक उन्नति और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त करने का भी प्रभावशाली माध्यम है।
विष्णु सहस्रनाम का इतिहास
विष्णु सहस्रनाम का उल्लेख महाभारत के अनुशासन पर्व में मिलता है। जब धर्मराज युधिष्ठिर ने भीष्म पितामह से यह पूछा कि "धर्म का पालन कैसे किया जाए? किस देवता की उपासना सबसे श्रेष्ठ है?" तब भीष्म ने भगवान विष्णु के सहस्र नामों का उल्लेख करते हुए यह स्तोत्र प्रस्तुत किया। यह मान्यता है कि इस स्तोत्र का नियमित पाठ जीवन के समस्त संकटों से मुक्ति दिलाता है।
विष्णु सहस्रनाम स्तोत्र के लाभ
1. मानसिक शांति और तनाव मुक्ति: इसके पाठ से चित्त शांत होता है और तनाव कम होता है।
2. सकारात्मक ऊर्जा और आध्यात्मिक उन्नति: यह स्तोत्र मन को पवित्र करता है और अध्यात्मिक रूप से समृद्ध बनाता है।
3. रोगों से रक्षा: नियमित जप से कई शारीरिक और मानसिक रोग दूर होते हैं।
4. वास्तु दोष निवारण: घर में इसके पाठ से नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है।
5. कर्म शुद्धि और मोक्ष प्राप्ति: इसके नामों के जाप से आत्मा शुद्ध होती है और मोक्ष की ओर अग्रसर होती है।
पाठ की विधि
- सुबह स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें।
- भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र के सामने दीपक और अगरबत्ती जलाएं।
- "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जप करें।
- विष्णु सहस्रनाम स्तोत्र का पाठ शांत चित्त से करें।
- चाहें तो इसका श्रवण भी कर सकते हैं।
विष्णु सहस्रनाम स्तोत्र केवल एक धार्मिक पाठ नहीं, बल्कि आत्मा के उत्थान का मार्ग है। इसका नियमित जप करने से व्यक्ति का मन शांत रहता है, जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आता है और परमात्मा की कृपा बनी रहती है। आज की भागदौड़ भरी दुनिया में यह स्तोत्र न केवल भक्ति का माध्यम है, बल्कि मानसिक संतुलन का स्रोत भी है।
"श्री विष्णु सहस्रनाम स्तोत्रम्" का संपूर्ण संस्कृत मूल पाठ दिया गया है। यह वही स्तोत्र है जिसे महाभारत के अनुशासन पर्व में भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को सुनाया था।
श्री विष्णु सहस्रनाम स्तोत्रम् (संस्कृत मूल पाठ)
ध्यानम्
शुक्लांबरधरं विष्णुं शशिवर्णं चतुर्भुजम्।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत्सर्वविघ्नोपशान्तये॥
स्तोत्र प्रारंभ
विशं पावनं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम्।
जयं धनं यशः पौत्रं ज्ञानं विद्यां च केवळम्॥
श्रीवैशम्पायन उवाच —
श्रुत्वा धर्मानशेषेण पावनानि च सर्वशः।
युधिष्ठिरः शान्तनवं पुनरेवाभ्यभाषत॥
युधिष्ठिर उवाच —
किं एकं दैवतं लोके किं वाप्येकं परायणम्।
स्तुवंतः किं कमर्चंतः प्राप्नुयुर्मानवाः शुभम्॥
को धर्मः सर्वधर्माणां भवतः परमो मतः।
किं जपन्मुच्यते जन्तुर्जन्मसंसारबन्धनात्॥
भीष्म उवाच —
जगत् प्रभुं देवदेवं अनन्तं पुरुषोत्तमम्।
स्तुवन्नामसहस्रेण पुरुषः सततं यजेत्॥
ॐ विष्णुं जिष्णुं महाविष्णुं प्रभविष्णुं महेश्वरम्।
अनंतं विश्वरूपं च विष्वरूपं नमोऽस्तु ते॥
अंत में फलश्रुति (सुनने व जपने के लाभ):
य इदं शृणुयात् नित्यं यश्चापि परिकीर्यते।
न पापं तत्प्रविशति न च व्याधिर्न दारिद्रम्॥