श्रुत पंचमी 2025: जैन धर्म का ज्ञान पर्व

श्रुत पंचमी 2025 का पर्व जैन धर्म के लिए क्यों महत्वपूर्ण है? जानिए इसका इतिहास, महत्व, परंपराएं और धार्मिक आयोजन।

श्रुत पंचमी 2025: जैन धर्म का ज्ञान पर्व

श्रुत पंचमी जैन धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे 'ज्ञान पंचमी' और 'प्राकृत भाषा दिवस' के रूप में भी जाना जाता है। यह पर्व न केवल जैन ग्रंथों की पवित्रता और महत्ता को रेखांकित करता है, बल्कि धर्म के उन ऐतिहासिक क्षणों की स्मृति भी कराता है, जब जैन आचार्यों ने मौखिक परंपरा को लिखित रूप में बदलकर ज्ञान को सुरक्षित किया था।

श्रुत पंचमी 2025 में कब है?

वर्ष 2025 में श्रुत पंचमी का पर्व शनिवार, 31 मई को मनाया जाएगा। यह तिथि जेष्ठ शुक्ल पंचमी को आती है और पंचांग के अनुसार हर साल यही दिन श्रुत पंचमी के रूप में मनाया जाता है।

श्रुत पंचमी का ऐतिहासिक महत्व

जैन धर्म में ज्ञान को 'श्रुत' कहा जाता है, और इसी आधार पर 'श्रुत पंचमी' का नाम पड़ा। यह पर्व उस दिन की स्मृति है जब आचार्य धरसेन के निर्देशन में दो महान आचार्यों – आचार्य पुष्पदंत और आचार्य भूतबलि – ने प्रथम बार जैन धर्म के मौखिक ज्ञान को ग्रंथों में लिपिबद्ध किया। इस ग्रंथ का नाम षट्खंडागम है, जिसे जैन धर्म का पहला और अत्यंत पूज्यनीय ग्रंथ माना जाता है।

इस घटना के पहले तक जैन धर्म का सम्पूर्ण ज्ञान गुरु-शिष्य परंपरा के माध्यम से मौखिक रूप में ही संजोया जाता था। लेकिन समय के साथ जब यह अनुभव हुआ कि ज्ञान को स्थायी रूप देने के लिए उसे लिपिबद्ध करना आवश्यक है, तब श्रुत पंचमी का आधार बना।

षट्खंडागम: एक परिचय

षट्खंडागम शब्द का अर्थ है – छह भागों वाला ग्रंथ। यह ग्रंथ द्रव्य, गुण, पर्याय, जीव-अजीव, और कर्मों के सिद्धांतों को अत्यंत गहराई से समझाता है। यह केवल जैन धर्म का धार्मिक ग्रंथ ही नहीं, बल्कि दर्शन, तर्क और विज्ञान की दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण माने जाने वाले ग्रंथों में से एक है।

श्रुत पंचमी की परंपराएं

श्रुत पंचमी के दिन जैन धर्मावलंबी अपने घरों, मंदिरों और पुस्तकालयों में रखे ग्रंथों की पूजा करते हैं। इस दिन शास्त्रों की विशेष सफाई की जाती है, उन्हें साफ वस्त्रों में लपेटा जाता है और धूप-दीप व पुष्पों से पूजा की जाती है। कई स्थानों पर जिनवाणी माता की शोभायात्रा निकाली जाती है, जिसमें जैन ग्रंथों को चांदी की पालकी में सजाकर नगर भ्रमण कराया जाता है।

जैन समुदाय में ऐसा विश्वास है कि इस दिन ग्रंथों की पूजा करने से ज्ञान की प्राप्ति होती है और व्यक्ति का मन शुद्ध होता है। साथ ही, यह भी माना जाता है कि इस दिन कोई भी नया धार्मिक ग्रंथ पढ़ना या अध्ययन आरंभ करना अत्यंत शुभ होता है।

क्यों मनाते हैं श्रुत पंचमी?

श्रुत पंचमी के पीछे उद्देश्य यह है कि आज की पीढ़ी को यह समझाया जा सके कि हमारे धार्मिक ग्रंथ केवल पूजा की वस्तु नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, परंपरा, तर्क और ज्ञान का अमूल्य स्रोत हैं। ज्ञान को संरक्षित करना और उसका सही अध्ययन करना, यही इस पर्व का मूल संदेश है।

यह पर्व समाज को यह भी याद दिलाता है कि धार्मिक परंपराओं की रक्षा केवल भावनाओं से नहीं, बल्कि अध्ययन और व्यवहार से होती है। जिस प्रकार आचार्य धरसेन ने भविष्य को देखते हुए ज्ञान को लिखित रूप दिया, वैसे ही आज की पीढ़ी को भी धार्मिक साहित्य को समझने और आत्मसात करने की आवश्यकता है।

प्राकृत भाषा और श्रुत पंचमी

श्रुत पंचमी को प्राकृत भाषा दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। जैन धर्म के अधिकांश ग्रंथ प्राकृत भाषा में लिखे गए हैं, जो उस समय की प्रमुख बोली थी। यह भाषा सरल, मधुर और बोधगम्य मानी जाती है। आज के युग में जब क्षेत्रीय भाषाओं का संरक्षण चुनौती बन गया है, तब प्राकृत भाषा का यह उत्सव हमें भाषा की संस्कृति और ज्ञान से जोड़ता है।

धार्मिक आयोजन और गोष्ठियां

श्रुत पंचमी के दिन जैन मठों, मंदिरों और संस्थानों में विशेष गोष्ठियों का आयोजन होता है, जिनमें जैन विद्वान शास्त्रों की व्याख्या करते हैं और ज्ञान के प्रसार पर चर्चा करते हैं। कई संस्थाएं इस दिन नए ग्रंथों के प्रकाशन की घोषणा करती हैं और पाठ्यक्रमों की शुरुआत करती हैं।

बच्चों और युवाओं के लिए शास्त्र प्रतियोगिताएं, निबंध लेखन, प्रवचन और प्रश्नोत्तरी सत्र भी आयोजित किए जाते हैं ताकि वे इस पर्व से गहराई से जुड़ सकें।

डिजिटल युग में श्रुत पंचमी का महत्व

आज जब संचार और अध्ययन के साधन पूरी तरह डिजिटल हो चुके हैं, तब श्रुत पंचमी का महत्व और भी बढ़ जाता है। जैन समुदाय ने अपने ग्रंथों को डिजिटाइज़ करना आरंभ कर दिया है ताकि नई पीढ़ी इन ग्रंथों को मोबाइल, कंप्यूटर और टैबलेट के माध्यम से भी पढ़ सके।

यह कदम आचार्य धरसेन की परंपरा का ही विस्तार है – ज्ञान को समयानुकूल रूप में सुरक्षित करना।

श्रुत पंचमी केवल एक पर्व नहीं, बल्कि यह ज्ञान, संरक्षण और आस्था का संगम है। यह दिन हमें यह प्रेरणा देता है कि ज्ञान को केवल संग्रहित नहीं, बल्कि जीवन में लागू भी किया जाए। जैन धर्म की यह महान परंपरा हमें यह सिखाती है कि समय चाहे जैसा भी हो, धर्म और ज्ञान का दीपक जलता रहना चाहिए।

श्रुत पंचमी 2025 का यह पर्व नई पीढ़ी को जैन धर्म के मूल सिद्धांतों से जोड़ने का एक स्वर्णिम अवसर है।


Disclaimer:

यह लेख केवल सामान्य जानकारी के उद्देश्य से प्रस्तुत किया गया है। इसमें दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं पर आधारित है। कृपया किसी भी धार्मिक निर्णय या अनुष्ठान से पूर्व अपने गुरु या धार्मिक सलाहकार से परामर्श लें।